यथायोग्य वर्ताव का विचित्र तर्क: पण्डित महेंद्र पाल जी ने स्वयं रचित निरर्थक विवाद और अपशब्दों की श्रंखला को आगे बढ़ाते हुए एक विचित्र तर्क दिया है कि अपशब्द उन्होंने इसलिए प्रयोग किये और वो निरंतर कर रहे हैं क्योंकि वो शिष्य ऋषि दयानन्द के
सबसे पहले तो हम देश को गुलामी से आजाद कराने वाले क्रान्तिकारि- स्वतन्त्रता आन्दोलन में कई संगठनो ने महत्वपूर्ण योगदान दिया उन्हीं में से एक अमर नाम 'आर्यसमाज' का भी रहा हैं |आर्यसमाज के प्रवर्तक *स्वामी दयानन्द सरस्वती ने 1885 मे अमर ग्रंथ सत्यार्थ प्रकाश मे स्वदेशी राज्य का उदघोष करते हुए कहा...*"
यूरोप की विवशता....हमारी मूर्खता...1. आठ महीने ठण्ड पड़ने के कारण कोट पेंट पहनना उनकी विवशता ओर शादी बाले वाले दिन भरी गर्मीं में कोट - पेंट डाल कर बरात लेकर जाना हमारी मुर्खता !2. ठण्ड में नाक बहते रहने के क