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बेपरवाह

10 जून 2020

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बेपरवाही का आलम है यह, कभी तुम हुये, तो कभी मै, जिन्दगी ने ऐसी करवट बदली, एक दूसरे के बिना रह सके न हम, अब फलक पर फिर से मिलेंगे, कभी बेपरवाह तुम होना, और कभी हम, इस जमीं पर सितम बहुत है, मगर धोखे सिर्फ तुम्हीं से खाये है, वजूद मेरा, वजूद मेरा कोई हिला न सका, पर तुम्हारे दिये जख्म ने, मेरा जर्रा जर्रा छलनी किया है, जब छोड़ दी परवाह तेरी, तो बेपरवाही का नाम दिया है, मुझे अजीज है मेरा आज, जिसमें मै खुद को जीती हूँ, बनती हूँ संवरती हूँ, और आईना निहारती हूँ, हां, यह सच है, हां... यह बिल्कुल सच है, मुझे प्यार हो गया है, फिर से पर इस बार वह शख्स तुम नही, मै "स्वयं"हूँ।। स्वलिखित मानवी सिंह"झूपा "

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