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आदत और परिस्थिति

5 अप्रैल 2022

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यह मेरी आदतें हमने जन्म से ना पाई है
यह सीखी नहीं परिस्थितियों ने सिखाई हैं
एक दिन गए बिजली विभाग के दफ्तर में,
चार बाबू चाय की चुस्ती में मस्त थे,
हमारी कौन सुने वो तो अपने में ही व्यस्त थे
लाइन जितनी लंबी थी हमें उतनी ही जल्दी थी
क्या करें लाइन में लग कहीं जाना था ज्यादा नहीं 100 200 के बाद ही मेरा नंबर आना था
थोड़ी देर बाद वहाँ पर एक दलाल का आना हुआ
300 का बिल था ₹100 सुविधा शुल्क के साथ दफ्तर में जाना हुआ,
बाबू को देख मेरा दिल पसीज गया
मैंने कहा बाबूजी मेरा बिल जमा कर लो मेरा दिल दुआएं करेगा
बाबू बोला
बिल तो मैं जमा कर लूंगा; चाय का बिल क्या तेरा बाप भरेगा
मैं उदास था
मैंने बोला सौ दिए है इससे ही काट लो ना
उसने पुलिस को बुलाया और कहा सुविधा शुल्क देने के जुर्म में 2 -4 साट दो न
पुलिस ले गई हवालात में
रुपए लिए तो लिए डंडा दिए ब्याज में
घर आए घर वालों ने पूछा
पूरा दिन लग गया कितना बड़ा बिल था
मैंने बोला
रही बची कसर आप भी निकाल लो पर रकम मुझे पूरी 3100 दिला दो
घरवालों ने कहा तू तो बड़ा अच्छा लड़का है
पर आज क्यों इतना भड़का है
दास्तान सुनाई उनको संभल के चले गए पूंछा क्या हुआ तुमको
वह बोले
मैंने अब तक यह छुपाई है वह पुनः तरोताजा हो आई है
यह मेरी आदतें हमने जन्म से ना पाई है
यह सीखी नहीं परिस्थितियों ने दिखाई है

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