विपक्षी नेता की चिट्ठी प्रधान सेवक के नाम
🌺डाॅक्टर साहिबा वो हिंदी की अंग्रेजी में करती हैं बात , गुस्सा उनकी नाक पर रहता अंग्रेजी की वो तोड़ें टांग, अंग्रेजी बीच हिंदी ऐसे बोलें जैसे कंकड अटके खाते भात। 🌺डाॅक्टर साहिबा वो हिंदी की अंग्रेजी
हमने तो आज तक यही सुना था कि हर लड़की हसीना ही होती है वह शक्ल सूरत से चाहे "टुनटुन" , शूर्पणखां या कुब्जा ही क्यों न हो । हसीना का एक सौन्दर्य शास्त्र होता है । वह चांद सी खूबसूरत होती है चाहे उसमें
"सुंदर का ढाबा" जयपुर में एक जानी पहचानी जगह बन गई थी । यहां का खाना बड़ा स्वादिष्ट होता है । एक ब्रांड बन गया था "सुंदर का ढाबा" । सुंदर ने गुणवत्ता से कोई समझौता नहीं किया था । "बढिया भोजन और मीठा व
क्या वर्षा जब जीवन पानी ! ********************* उमड़-घुमड़ कर बादल बरसे l खेत बाग वन उपवन सरसे ll यह पानी विकराल हो गया l बहता है घर बार खो गया ll किसने कर दी यह मनमानी? क्या वर्षा जब जीवन पा
जय जय हे जगत जननी सीता माता जय जय हे जगत नारायणी सीता माता, झोली भर के जाता, जो तेरे दर पे आता। तू सुकुमारी जनक दुलारी मिथिला कुमारी, सारा संसार तेरी महिमा के गुण है गाता। जय जय हे जगत जनन
अदब करना है,तो कलम से सीखिए जनाब,सिर झुकाना है,तो कलम से सीखिए जनाब,संस्कार सीखना है,तो कलम से सीखिए जनाब,खुदा के आगे,तो सभी सिर झुकाते हैं जनाब,कलम के आगे भी,झुकाके देखिए जनाब,लेकिन अगर जनाब,कलम नहीं
विडंबना ******** प्रश्नों के उत्तर का, मैं व्यास खोजता रहा l जीवन के स्वप्नों का, प्रवास खोजता रहा ll नित्य नव अति चेतना होती प्रफुल्लित l राग-वाणी संकलित अविरल प्रबल नित ll नयन कण में बिम्ब का
मुर्गा अपने दड़बे पर बड़ा दिलेर होता है। अपनी गली का कुत्ता भी शेर होता है।। दुष्ट लोग क्षमा नहीं दंड के भागी होते हैं। लातों के भूत कभी बातों से नहीं मानते हैं।। हज़ार कौओं को भगाने हेतु एक पत्थ
जगत में जो ईश्वर कहलायाउस कृष्ण की आधार हैं राधा वृंदावन की बहार हैं राधामधुवन की झंकार हैं राधा हैं राधा सबमें थोड़ी थोड़ीसावन की मल्हार हैं राधा हैं राधा बिना जी
एक रंगीन किताब है ..! फर्क बस इतना है कि, कोई हर पन्ने को दिल से पढ़ रहा है; और कोई दिल रखने के लिए पन्ने पलट रहा है। हर पल में प्यार है हर लम्हे में ख़ुशी है ..!
कचड़े की गाड़ी आई देखो। गाना गाती आई देखो।। गाड़ी आई द्वार द्वार पर।सब की बारी आई देखो।। रंग बिरंगी डस्टबिन लेकर। सब ने दौड़ लगाई देखो।। गीले और सूखे कचड़े की। अलग-अलग जग
वो पिता होता हैहर मुश्किल को जो सहता है और कुछ भी न कहता हैवोपिता होता हैखिलौने जो लाता है,,बच्चो को कपड़े नए जो पहनाता हैवो पिता होता हैखुद के होते है जूते फटे औरलिबास पुराना जिसकेतन पर होता
योगेश्वर सिंह मन ही मन उबल रहे थे । रविवार का दिन था और सुबह के नौ बज गये थे लेकिन ना तो बेटी टीना जगी , ना बेटा रोहन और ना ही बहू लक्षिता । सब खूंटी तानकर सो रहे थे । पत्नी दिव्या की ड्यूटी किसी परीक
घ़ना दिन सो लिओ रे अब जाग मुसाफिर जाग तू जहा आयो मां की गोद मे जततन लाड़ लडायो
देखता हू अक्सर खाने व खजाने को ,रेसिपी बहुत आती है ,पर जाने कहा चली जाती पचाने को,पाक कला का अक्सर कालम,खाली ही पाया ,इसीलिए मै पाक कला पर,एक रचना लेकर आया अरे
हाँ थोड़ी सी बड़ी हो गई हूँ। उम्र के अर्धशतक पर खड़ी हूँ। फिर भी इस बात पर अड़ी हूँ। सोच समझ कर मुुँह खोलो। आंटी मत बोलो.... बालों में मेहंदी तो शौक से लगाई। जिम्मेदारियों के बोझ से पीठ है झुकाई। चश्म
बढ़ती महंगाई को देख कर, दिया आदमी रोए। महंगाई की मार से, बच ना पाया कोए।। सुरसा के मुंह की तरह, बढ़ती जाए महंगाई। घंटों काम करके भी, छोटी लगे कमाई।। वेतन आवत देखकर, मन में गए हर्षाय। हिसाब लगाया