आखिर कब तक ! जानने चाहेंगे कि आज कौनसी व्यथा लेकर आई हूँ आज मैं फिर से एक यथार्थवादी कहानी लेकर आई हूं 'हिंदी'भाषा की। उम्मीद करती हूं आप सभी आदरणीय जन भी मेरे साथ हिंदी भाषा की व्यथा सुनना चाहेंगे।
नमस्कार मैं 'हिंदी' उन सभी साहित्यकारों का धन्यवाद देना चाहती हूं । जो मेरा अस्तित्व चाहते हैं।
एक दिन मैं अर्थात हिंदी सही समय पर विद्यालय पहुंच गई थी। लेकिन स्कूल का आज नजारा कुछ अलग ही नजर आ रहा था। हिंदी ने अपने स्टाफ से पूछा। आज इतना स्कूल में बदलाव कैसे हैं सभी अंग्रेजी बोल रहे हैं। आज हमारी नई प्रिंसीपल अंग्रेजी आई है ,उसी ने यह नियम बनाए हैं। पंजाबी ने आंखें मटकाते हुए कहा। जो हिंदी भाषा का प्रयोग करेगा, उसे पचास रुपए फाइन देना पड़ेगा । हिंदी यह सुन चुपचाप अपनी कक्षा की तरफ चली गई। आज बच्चे हिंदी का स्वागत अंग्रेजी में कर रहे थे। बच्चे हिंदी को उपेक्षा की नजर से देख रहे थे। हिंदी का महत्व अब इसी स्कूल में इतना ही था। कि जब हिंदी विषय पढ़ाया जाए तब तक बोली जाए उसके बाद उसे भी अंग्रेजी का ही प्रयोग करना पड़ेगा। हिंदी के लिए यह चिंता की बात थी। आज छुट्टी होते ही हिंदी अपनी मां संस्कृत के घर चली गई और वही से अपनी बेटी राजस्थानी को स्कूल से ले लिया।
आज हिंदी का चेहरा उदास देखकर मां बोली क्या हुआ बेटी इतनी उदास क्यों है।
कुछ नहीं मां बस यह प्राइवेट स्कूल वाले भी नए नए रूल निकालते रहते हैं मैं तो तंग आ चुकी हूं। अब एक नया नियम की हिंदी पढ़ाने के बाद मुझे भी अंग्रेजी का ही प्रयोग करना पड़ेगा। तभी राजस्थानी बोली मां मुझे भी बच्चे चिढ़ाते हैं। मेरा मजाक उड़ाते हैं। कल से मैं भी स्कूल नहीं जाऊंगी। हिंदी बेटी की ऐसी बात सुनकर चिंतित हो उठी। क्यों बेटा स्कूल क्यों नहीं जाओगी ।राजस्थानी को अभी अभी स्कूल डाला ही था। उसे अंग्रेजी आती ना थी। बच्चे उसे चिढ़ाते, यह देख संस्कृत बोली बेटा मैं तो अब रिटायर्ड हो चुकी हूं। मेरा अस्तित्व तुम ही बनाए रख सकती हो वैसे तुम ही मेरा सरल रूप हो जो बच्चे आसानी से समझ सकते हैं।
लेकिन मां! मेरा कोई महत्व नहीं है ,क्या मेरा कोई अस्तित्व नहीं ! मुझे तो खुद पर शर्म आने लगी है। जहां भी जाती हूं , उपेक्षा भरी नजरें ही पाती हूं। लोग सिर्फ हिंदी दिवस बना कर भूल जाते हैं। मैंने प्रिंसिपल सर को भी बोला, की हिंदी माध्यम ही पढ़ाई का रखें। लेकिन अभिभावक नहीं चाहते कि हमारे बच्चे हिंदी में पढ़ें। मां क्या ऐसा नहीं हो सकता कि बच्चों को संस्कृत का ज्ञान प्राथमिक स्तर से दिया जाए। हमारी संस्कृति को बचाया जाए, बेटी की ऐसी बातें सुनकर मां ने कहा, बेटी तुम सही कह रही हो स्कूल वालों को भी दोष कहां तक दे। सभी अपने बच्चों को अंग्रेजी सिखाना चाहते हैं। तुम भी देख लो अपनी बेटी को अंग्रेजी माध्यम में डाला है, नतीजा तुम्हारे सामने हैं। अंग्रेजी लोगों की मानसिकता में इतना प्रभाव डाल रही है। जहां अंग्रेजी बोल रही हो। तो हिंदी अपने आप को उपेक्षित महसूस करने लगती है। मैं तो कहती हूं तुम अपने आप को मजबूत बनाओ ।अंग्रेजी भी भाषा है, तुम भी भाषा हो। और भाषा तो विचारों को समझने का माध्यम है। तो कोई भाषा उच्च और कोई तुच्छ कैसे हो सकती है। तुम्हें तो गर्व होना चाहिए कि तुम मेरी बेटी हो तुमने तो कई भाषाओं को अपने में समेट रखा है इसीलिए तुम झुकती हो। अंग्रेजी को अकड़ है क्योंकि वह अकेली है। तुमने तो तत्सम ,तद्भव, देशज ,विदेशी कितने शब्दों को मिला लिया है तुमने तो सभी देशों की भाषाओं को अपने में समेटे हो। सुबह उठते ही लोग 'चाय' शब्द का प्रयोग करते हैं, वह भी चीन से आया है। देखो चीन ने तो हमें करोना दिया। फिर भी तुम उनके शब्दों को संभाल रही हो। आलू पुर्तगाली का है। और तुम सब्जी बना रही हो। ऐसे कई भाषाओं के शब्द तुमने अपना लिए। बिना किसी विरोध के, मुझे देखो मैं देवों की भाषा, प्राचीन काल से चली आ रही हूं। , 'वैदिक संस्कृत' पढ़े लिखो की भाषा थी 'लौकिक संस्कृत' आम लोग बोलते थे। मेरा भी सरल रूप तुम में मौजूद है। तुमने तो बेटी गागर में सागर भर लिया है। तो तुम्हें किस बात की शर्मिंदगी। राजस्थानी यह बातें सुन रही थी । राजस्थानी नादानी भरे स्वर में बोली, तो मां इतने महान होते हुए भी हमें अपने ही देश में लज्जित क्यों होना पड़ रहा है!............ राजस्थानी ने ऐसा प्रश्न कर सभी को सोचने पर मजबूर कर दिया है। हमारे देश में होनहार बच्चे जो अंग्रेजी भाषा के कारण पिछड़ रहे हैं। उसका जिम्मेदार कौन है ! आखिर कब तक हाँ आखिर कब तक !
नीतू जोशी की कलम से✍️✍️