आखिर कब तक ।आप सोच रहे होंगें आज किस मुद्दे पर लिखने वाली है । समस्याएं है लेकिन समाधान नही ऐसा तो हो नही सकता जहाँ समस्या ने जन्म लिया वहाँ समाधान उसके बाद ,आ ही जाता है, क्या बताऊँ ! हैरान हो जाती हूँ !जब लड़कियों के साथ कोई घटना घटित हो जाए । तो ज्यादा से ज्यादा क्या होगा कुछ भी नहीं । एक बार शोर केंडल मार्च , यूट्यूब, इंस्ट्राग्राम, फेसबुक पर संवेदना जताना फिर सब शान्त ।क्या ! यही न्याय है । और ऐसा कब तक चलेगा हमारे शर्मा जी को ही लो आज बेटी शादी के बाद भी घर बैठी है आप पूछूंगे क्यों । अरे ! भाई पिता जीवन भर की पूंजी बेटी की शादी में लगाता है और बेटी आकर मायके बैठे ये तो ना माँ बाप चाहेंगे ना बेटी । सीमा ने भी दस साल तक ससुराल वालों का अत्याचार सहन किया जब जीवन घूटन बनने लगा खुद बीमार रहने लगी तब जाकर मायके की शरण ली कारण था सीमा का सरकारी नौकरी में ना होना ससुराल वालों ने शादी के समय यह बोला था कि हमें तो सिर्फ पढ़ी लिखी लड़की चाहिए लेकिन उद्देश्य बड़ा खास था इससे सरकारी नौकरी ही करवानी है । और खुद के बेटे से उम्मीद है नहीं नालायक है ।यह तो कुछ करेगा नही । यह तो हुई शर्मा जी की बेटी की बात लेकिन आश्चर्य यह है शर्मा जी के मोहल्ले के प्रत्येक घर में शादी के बाद भी बेटी मायके बैठी है ।लक्ष्मी का पति शादी के तुरन्त बाद ही पीटने लगा । सीता के पति ने तो पहले से ही शादी कर रखी थी और गुड़िया के तो ससुराल व पति ने जीना हराम कर रखा था और ललिता का तो पति लाखों का कर्जा करके रफू चक्कर हो गया बिना बताए । अब पीयर आने के अलावा उनके पास क्या रह जाता है ।सीता जी ने भी जब घर त्याग किया तो राम जी के कहने पर लक्ष्मण जी ससम्मान वाल्मीकि जी के आश्रम में सीता जी को छोड़कर आए थे तो सीता जी की सुरक्षा का पूरा ध्यान रखा गया था लेकिन इस कलयुग में पिता के घर के अलावा कोई ठिकाना नही होता जिस घर में जन्म लिया उसे तो वही सहारा देगा ।कौन न्याय दिलवाए क्योंकि हमारे भारत में पूलिस का नाम ऐसे लिया जाता है पता नही कौनसा गुनाह कर दिया । सभी इतना डरते है कि चूपचाप सहन कर रहे हैं । और कोई चला भी जाए तो उम्र सारी कोर्ट कचहरी में ही निकल जाती है कोई अर्थ नही ऐसी कानून व्यवस्था जिसमें जाने में इंसान हजार बार सोचे तो उसमें सुधार होना आवश्यक है न्याय व्यवस्था तो ऐसी हो जिससे इंसान राहत की सांस ले । कुछ अच्छी चीजें हम पड़ोसी देशों से ले सकते है जैसे की न्याय व्यवस्था । कहना आसान है तो करना भी आसान हो सकता है आज भी शिक्षित लड़कियाँ अत्याचार का शिकार हो रही है सब मौन है समाज, परिवार , माता-पिता, बेटी और गूंज रही है खामोशी कि आखिर कब तक हमारे देश में ऐसे ही चलता रहेगा आखिर कब तक !
आखिर कब तक
हाँ !आखिर कब तक
खामोशियाँ गुंजेगी !
आखिर कब तक बेटियाँ
न्याय के लिए तरसेगी
अरे! कोई तो ईश्वर के दूत बनो
न्याय दिलवाने में
बेटियों की मदद करो ।
नीतू जोशी की कलम से