समीर नाम था उनका जैसा नाम वैसा ही व्यक्तित्व भी उनका था।हम लोगो ने अपनी अपनी जगह सुनिश्चित की और बातो का सिलसिला शुरू हुआ सब लोग अपनी ही बातो में मग्न थे और मैं सिर झुकाए बैठी थी क्योंकि सामने देखने की हिम्मत नही जुटा पा रही थी ।पहली मुलाकात में हैकच अलग सा महसूस हुआ था मुझे ,ऐसा एलजी रहा था के वो मुझे ही निहार रहे है एक टक उनकी निगाह मुझे देखती रही और मैं बीच बीच मे उन्हे अपनी कनखीखो से देखती थी।
उनकी बहन जो की उनसे छोटी थी उसने अपने भैया की तरफ देखा तो समीर ने कुछ इशारा किया उसकी तरफ समायरा नाम था उनकी बहन का ।उसने चुटकी लेते हुए कहा के भैया अकेले में कुछ बात करना चाहते है,ये सुनते ही मेरे पसीने छूट गए घबराहट में मेरे हाथ से सैंडविच का पीस गिर गया फिर खुद को संभालते हुए मैंने नैपकिन से हाथ वा अपनी ड्रेस को साफ किया जिस पर थोड़ा सा सॉयस गिर गया था ।
अगले ही पल वो उठ कर कोने मेक्राखी टेबल की तरफ चल दिए ,मेरे पापा ने मुझे भी वह जाने के लिए कहा जाओ बेटा सुरभि जा कर बात कर लो आजकल तो ये सब चलता रहता है।मैं घबरा कर मम्मी की तरफ देखने लगी के शायद वो कुछ बोले लेकिन उन्होंने भिहामी में सिर हिला दिया और फिर मेरे पास वहा जाने के अलावा कोई रास्ता नही था।
मैं धीरे से उठी और एक एक कदम बढ़ाती हुई उनके ठीक सामने जा कर बैठ गई......…. आगे पढ़े