मत पूछो ओ लाल मेरे
क्या है आंगन के पार
एक अलग ही दुनिया
जहाँ सबकुछ है व्यापार
स्वार्थ धर्म है जीवन का
दोष मानते प्यार
एक अलग ही दुनिया
बस्ती इस आंगन के पार
इस आंगन के पार मिलेगी
रिश्तों की इक रेल
डिब्बे जिसके झूट से जुड़े
स्वार्थ सिद्धि का खेल
बैठे जिसमे यात्री बनकर
मन के सभी विकार
एक अलग ही दुनिया
बस्ती इस आंगन के पार
धन ही होगा पिता मात
और धन होगा भगवान
जहां विराजे धन में जीवन
धन में बसते प्राण
धन संपत्ति के खातिर
जहां करते सब तकरार
एक अलग ही दुनिया
बस्ती इस आंगन के पार
पुष्प नही पाओगे कांटो
से परिचित हो जाओ
संसार हंसेगा आंखो से
न सम्मुख नीर बहाओ
रज धुल जायेगी इक दिन
संग नयन नीर की धार
एक अलग ही दुनिया
बस्ती इस आंगन के पार