हे ईश्वर , यदि तुम हो,तो कहो
कौनसा अपराध ऐसा हुआ?
जिसका दंड ऐसा मिला ?
तुमने ही कहा था, पत्ता भी न हिलेगा
बिन इच्छा के तुम्हारे, अर्थात
किया तो ये तुमने ही है,
तनिक भी मन विचलित न हुआ तुम्हारा?
कहते हो हम सब तुम्हारे बच्चे हैं,
फिर किस तरह तुम इतने निर्दयी हुए?
हेईश्वर , यदितुमहो,तो सुनो
आस्था अटूट थी, पर
अब तुम्हारा अस्तित्व भी स्वीकार्य नहीं |