उमड़ घुमड़ कर मन में..आते हैं कुछ विचार..
कुछ कह जाने का मन करता है,
अपनी बातें समझाने का मन करता है..
एक आवाज़ भी अंदर से आती है कि तोड़ो चुप्पी अपनी..
कुछ तो बोलो कुछ तो पूछो..
पर वो नहीं कहती कुछ, ना ही कुछ पूछती है,
उन सवालों के जवाब से उसे डर लगता है
वो जानती है कि उन जवाबों से उसका भ्रम टूट जाएगा
भ्रम सब कुछ अपना होने का, अपने अधिकार का, तुम्हें ज़रूरत है उसकी, इस बात का भ्रम..
इसलिए चुप रहती है वो..
उस झूठ में ही ख़ुशियाँ ढूँड़ लेती है जिसमें उसे ग़ुमान है
कि इस घर पर उसका भी है अधिकार और तुम पर भी..
रानी ह इस घर की ओर तुम्हारे दिल की भी…