"अब मुझे लाल रंग अच्छा लगने लगा है " "ये क्या है मम्मा ! यह सगाई की साड़ी लाल रंग की है , आपको तो पता है ना मुझे लाल रंग पसंद नहीं है ।आपने उन लोगों से कहा क्यों नहीं ?" बारिश एक पच्चीस साल की लड़की है , जिसकी सगाई कल होने वाली है । सब बहुत खुश थे । आज बारिश की ससुराल से शगुन का सारा सामान आया था जिसमें साड़ी से लेकर जेवर मेकअप का सारा सामान यहां तक कि सैंडल्स भी साड़ी से मैचिंग करते हुए आए। साड़ी लाल रंग की थी जिसे देखकर उसका मुंह उतर गया । और एक घबराहट सी होने लगी थी जिसे वो मम्मी से छुपाना चाह रही थी इसीलिए चिल्लाकर अपनी बात रखी उसने। " बेटा सुहाग की सारी चीजें लाल रंग की होती है । और ये रंग तो सुहाग का प्रतीक होता है । कितना समझाऊं तुझे ,अब अपना यह बचपना छोड़ो और तैयार हो जाओ तुमने मुझे भी लाल रंग पहनने नहीं दिया पर अब तुम्हारी मनमानी नहीं चलेगी ।" मम्मी नाराज हो रही थी । " नहीं मैं नहीं पहनूंगी ,तो नहीं पहनूंगी ।" कहकर गुस्से में पैर पटकते हुए वहां से चली गई । " पता नहीं क्यूं इस लड़की को लाल रंग से इतनी चिढ़ है ।"शोभा जी भुनभुनाती हुई अपने आप से कह रही थी । बारिश अपने कमरे में जाकर निढाल सी बेड पर कटे तने सी गिर गई । लाल रंग .... ये लाल रंग उसका पीछा क्यों नहीं छोड़ रहा है । कैसे समझाए सबको , नफरत है उसे इस रंग से पर कोई क्यों नहीं समझता , समझेंगे भी तो कैसे कभी उसने कुछ कहा नहीं और किसी ने पूछा भी नहीं । इसे बस उसका बचपना समझ कर छोड़ दिया करते थे सब। सूना था कि एक मां अपने बच्चों की आंखे पढ़ लेती हैं, पर उसकी मम्मी ने कभी उसे पढ़ा ही नहीं कभी समझा ही नहीं । कभी बैठ कर प्यार से बात ही नहीं की , बस वो और उनका पार्लर , दुनियां को सजाते, चेहरों को मेक अप की परतें चढ़ाते खुद की बेटी के चेहरे की उदासी कभी पढ़ ही नहीं पाई। विचारों के सागर में गोते लगाते कब आंख लग गई पता ही नहीं चला , सुबह उठी तो आंखें सूखे आंसुओं से चिपक गई थीं। " बारिश ! बारिश ! बेटा दरवाजा खोलो कितना सोओगी । सुबह हो गई है भूल गईं क्या ? आज सगाई है तुम्हारी ।" " हां मम्मा उठ रही हूं ।" कह तो दिया पर वो सोई ही कहां थी । सजने संवरने का भी शौक नहीं था उसे तो , शादी भी नहीं करना चाहती थी पर पूरा खानदान पीछे पड़ गया था । स्कूल कॉलेज में कितने लड़के उसकी एक हां के लिए तरसते थे । पर उसने अपने
1 फ़ॉलोअर्स
2 किताबें