प्रलय- एक बार फिर!
एक बार फिर काँपी धरती , पर्वत ने ली अंगड़ाई !
एक बार फिर सिहरा जीवन , मन में व्याकुलता छाई !
एक बार फिर हुआ शोर , और लोग निकल घर से भागे !
एक बार फिर दिखी मौत , सबको अपनी आँखों आगे !
एक बार फिर धूल उड़ी , और एक बार फ़िर अंधिआरा !
एक बार फिर प्रलय हुई , और जीवन फ़िर बाजी हारा !
टूट गया घर कहीं