shabd-logo

राष्ट्रधर्म का बोध

27 अप्रैल 2015

331 बार देखा गया 331
धर्म ये नहीं के तुम डरे- डरे बने रहो , धर्म ये नहीं के तुम यूँ दीन बन पड़े रहो ! मुश्किलों में जब तुम्हारे देश की हो आन तब , दुश्मनों से घिर गया हो खुद का ही मकान जब ! देश द्रोहिओं ने जब हो राष्ट्र का बुरा किया , खुद तुम्हारे घर में ही जब हो तुम्हे सता दिया ! दीन मत रहो के तब ये धर्म की पुकार है , जितने भी हैं ग्रन्थ उन सभी का तो ये सार है ! फ़िर लड़ो भले ही तुम जियो न या के मर- मिटो , जो भि हो करो मगर स्वधर्म से नहीं डिगो ! एक बार तो कहो के अब नहीं स्वीकार है , जो भी हो रहा यहाँ वो घोर अत्याचार है ! कृष्ण के ऐ वंसजों चलो समय है आ गया , कृष्ण की धरा पे कंस साम्राज्य छा गया ! अब समय है आ गया अब तुम कमान थाम लो , राष्ट्र द्रोहिओं के गले में लगाम बांध दो ! जो समझ रहे हैं तुमको मूर्ख और डरा हुआ , उन विरोधिओं की जडें देश से उखाड़ दो ! याद करो यही हमे कृष्ण हैं बता गए , और राम तो स्वयम ये कर के हैं दिखा गए ! फिर कहो के हम भला क्यूँ मार्ग से भटक गए , पूज के भी राम को स्वधर्म से क्यों डिग गए ! अब नहीं सहेंगे हम करेंगे वो जो धर्म है , सतत लड़ते रहना ही तो शाश्त्र-निहित मर्म है ! गर समझ में आ गया हो इस कथा का सार तो, युद्ध के निमित्त पार्थ बनना भी स्वीकार लो !
1

राष्ट्रधर्म का बोध

27 अप्रैल 2015
0
1
0

धर्म ये नहीं के तुम डरे- डरे बने रहो , धर्म ये नहीं के तुम यूँ दीन बन पड़े रहो ! मुश्किलों में जब तुम्हारे देश की हो आन तब , दुश्मनों से घिर गया हो खुद का ही मकान जब ! देश द्रोहिओं ने जब हो राष्ट्र का बुरा किया , खुद तुम्हारे घर में ही जब हो तुम्हे सता दिया ! दीन मत रहो के तब ये धर्म की पुकार

2

तेरी याद!

27 अप्रैल 2015
0
1
0

आज फ़िर याद तेरी आई है , आज फ़िर याद तेरी आई है ! हर तरफ़ मेरे वही मन्ज़र है , ज़र्रे ज़र्रे मे वो तन्हाई है ! चाहतों की यहाँ तमन्ना है , ख्वाहिशों की फुहार आई है ! भीग़ जाना तो मेरी मर्ज़ी है , पर बरसना तेरी वफाई है ! आज फ़िर याद तेरी आई है ! आज फ़िर याद तेरी आई है! कुछ घड़ी देखता रहूँ तुमक

3

प्रलय- एक बार फिर!

28 अप्रैल 2015
0
0
1

एक बार फिर काँपी धरती , पर्वत ने ली अंगड़ाई ! एक बार फिर सिहरा जीवन , मन में व्याकुलता छाई ! एक बार फिर हुआ शोर , और लोग निकल घर से भागे ! एक बार फिर दिखी मौत , सबको अपनी आँखों आगे ! एक बार फिर धूल उड़ी , और एक बार फ़िर अंधिआरा ! एक बार फिर प्रलय हुई , और जीवन फ़िर बाजी हारा ! टूट गया घर कहीं

---

किताब पढ़िए