धर्म ये नहीं के तुम डरे- डरे बने रहो ,
धर्म ये नहीं के तुम यूँ दीन बन पड़े रहो !
मुश्किलों में जब तुम्हारे देश की हो आन तब ,
दुश्मनों से घिर गया हो खुद का ही मकान जब !
देश द्रोहिओं ने जब हो राष्ट्र का बुरा किया ,
खुद तुम्हारे घर में ही जब हो तुम्हे सता दिया !
दीन मत रहो के तब ये धर्म की पुकार है ,
जितने भी हैं ग्रन्थ उन सभी का तो ये सार है !
फ़िर लड़ो भले ही तुम जियो न या के मर- मिटो ,
जो भि हो करो मगर स्वधर्म से नहीं डिगो !
एक बार तो कहो के अब नहीं स्वीकार है ,
जो भी हो रहा यहाँ वो घोर अत्याचार है !
कृष्ण के ऐ वंसजों चलो समय है आ गया ,
कृष्ण की धरा पे कंस साम्राज्य छा गया !
अब समय है आ गया अब तुम कमान थाम लो ,
राष्ट्र द्रोहिओं के गले में लगाम बांध दो !
जो समझ रहे हैं तुमको मूर्ख और डरा हुआ ,
उन विरोधिओं की जडें देश से उखाड़ दो !
याद करो यही हमे कृष्ण हैं बता गए ,
और राम तो स्वयम ये कर के हैं दिखा गए !
फिर कहो के हम भला क्यूँ मार्ग से भटक गए ,
पूज के भी राम को स्वधर्म से क्यों डिग गए !
अब नहीं सहेंगे हम करेंगे वो जो धर्म है ,
सतत लड़ते रहना ही तो शाश्त्र-निहित मर्म है !
गर समझ में आ गया हो इस कथा का सार तो,
युद्ध के निमित्त पार्थ बनना भी स्वीकार लो !