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प्रलय- एक बार फिर!

28 अप्रैल 2015

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एक बार फिर काँपी धरती , पर्वत ने ली अंगड़ाई ! एक बार फिर सिहरा जीवन , मन में व्याकुलता छाई ! एक बार फिर हुआ शोर , और लोग निकल घर से भागे ! एक बार फिर दिखी मौत , सबको अपनी आँखों आगे ! एक बार फिर धूल उड़ी , और एक बार फ़िर अंधिआरा ! एक बार फिर प्रलय हुई , और जीवन फ़िर बाजी हारा ! टूट गया घर कहीं किसी का , कहीं किसी के महल गिरे ! हुआ बड़ा उत्पात , विधाता ही अब सबकी ख़ैर करे ! कहीं कोई मुस्कान नहीं , हर कहीं अश्रु और चीखें हैं ! कहीं कोई आराम नहीं , हर कहीं श्रमित से लोग खड़े ! देख रहा है कोई , अश्रु- पूरित आँखों से घर अपना ! जिसमे कभी रहा करते थे , सब अपने और बूढी माँ ! उसने सब कुछ गवाँ दिया अपना , अब किसके हेतु जिए ! जिनसे था जीवन उसका , वो सब अब उसको छोड़ गए ! हाय प्रकृति तू तो सबकी , जननी - माता कहलाती है ! सबके जीवन हेतु अन्न - जल , सबको सदा दिलाती है ! फिर विषम समय आने पर , क्यों पाषाण - हृदय बन जाती है ? गर्भ - निहित पाषाणों के घर्षण से प्रलय कराती है ! बड़ा विकट है कंपन तेरा , बड़ी भयानक लीला है ! तेरे गर्भ के पाषाणों ने , मानव जीवन लीला है !
डॉ. शिखा कौशिक

डॉ. शिखा कौशिक

sach me prabhu kee leela bahut vikat hai .sarthak lekhan hetu badhai

28 अप्रैल 2015

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राष्ट्रधर्म का बोध

27 अप्रैल 2015
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धर्म ये नहीं के तुम डरे- डरे बने रहो , धर्म ये नहीं के तुम यूँ दीन बन पड़े रहो ! मुश्किलों में जब तुम्हारे देश की हो आन तब , दुश्मनों से घिर गया हो खुद का ही मकान जब ! देश द्रोहिओं ने जब हो राष्ट्र का बुरा किया , खुद तुम्हारे घर में ही जब हो तुम्हे सता दिया ! दीन मत रहो के तब ये धर्म की पुकार

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तेरी याद!

27 अप्रैल 2015
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आज फ़िर याद तेरी आई है , आज फ़िर याद तेरी आई है ! हर तरफ़ मेरे वही मन्ज़र है , ज़र्रे ज़र्रे मे वो तन्हाई है ! चाहतों की यहाँ तमन्ना है , ख्वाहिशों की फुहार आई है ! भीग़ जाना तो मेरी मर्ज़ी है , पर बरसना तेरी वफाई है ! आज फ़िर याद तेरी आई है ! आज फ़िर याद तेरी आई है! कुछ घड़ी देखता रहूँ तुमक

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प्रलय- एक बार फिर!

28 अप्रैल 2015
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एक बार फिर काँपी धरती , पर्वत ने ली अंगड़ाई ! एक बार फिर सिहरा जीवन , मन में व्याकुलता छाई ! एक बार फिर हुआ शोर , और लोग निकल घर से भागे ! एक बार फिर दिखी मौत , सबको अपनी आँखों आगे ! एक बार फिर धूल उड़ी , और एक बार फ़िर अंधिआरा ! एक बार फिर प्रलय हुई , और जीवन फ़िर बाजी हारा ! टूट गया घर कहीं

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