19 फरवरी 2022
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Bihar government में संस्कृत शिक्षक पद पर 2013 से कार्यरत. स्वतंत्र लेखन बचपन से. रूचि :- काव्य लेखन पुस्तकें - प्रसून पंखी (प्रकाशित ) बाअदब (ग़ज़ल संग्रह ) प्रकाशित धूप और बारिश (मुक्त छंद )प्रकाशित D
मेरा बचपन जब भी जाता गाँव, दौड़कर बचपन मेरा आता है. सुबक-सुबक भीगी आँखों से, मुझको गले लगाता है। वह छप्पर-छजनी का घर, मुझे अब भी वहीं बुलाता है। जाऊँ जब भी गोदी में सिर रखकर मुझे सुलाता है। वह ब्रह्
जिंदगी को जिंदगी दे के गए जो इस जहाँ में, जिंदगी को रोशनी देकर गए उनको सलाम!! लाख तूफानों में रोशन ही रहे जिनके दीये, रोशनी बुझते हुए को दे गए उनको सलाम!! खुद बना गए लीक अरमानों को अपने मार के,
चाँद!आजतुम -बहुत सुंदर दिख रहे हो।जानते हो - कैसे?विचारों केघने बादलों के बीच,मन के आकाश पर,लुक-छिप करते,इशारों के अनकहेपन जैसे!!रुई के नरम टुकड़ों से,तुम ऐसे झाँक रहे हो-जैसेघने जंगल की,ऊँची वनस्पतिय