ऐ हमदम...
ऐ हमदम...✒️मन के मनके, मन के सारे, राज गगन सा खोल रहे हैंअंधकार के आच्छादन में, छिप जाने से क्या हमदम..?शोणित रवि की प्रखर लालिमानभ-वलयों पर तैर रही है,प्रातःकालिक छवि दुर्लभ हैशकल चाँद की, गैर नहीं है।किंतु, चंद ये अर्थ चंद को, स्वतः निरूपित करने होंगेश्रुतियों के अभिव्यंजन की अब, प्रथा नहीं है ऐ ह