शुभ संध्या प्रेम नमन्
नवधा भक्ति परमू अनूपा
उरु अनन्यता भाव फल रुपा।
हृदय एक रस प्रेम उमड़ता
सहज रास आनन्द उमगता।।
जै राधा कृष्ण प्रेम स्वरुपा
जड़ चेतन अभेद ब्रह्म रुपा।
रुप अनेक लीला उल्लासी
परम अक्षर ब्रह्म पुरवासी।।
भक्ति भेद रुप शक्ति सुहाई
योगिनी चतुष्पद चौपाई।
गहनू तत्व अभेद सुहाए
एक घट भेद भिन्न कहाए ।।
श्री राधाकृष्ण मन विराजो
चरण घूलि बनहिं सकल काजो।
हृदय सरोवरु प्रेम हिलोरी
बंदौ मैं कृष्ण संग किशोरी।।