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शुभ संध्या प्रेम नमन्नवधा भक्ति परमू अनूपा उरु अनन्यता भाव फल रुपा।हृदय एक रस प्रेम उमड़ता
श्रीमद्भागवत गीता अमृत सप्तमोऽध्यायः- ज्ञानविज्ञानयोग कौन्ते मुझमें आसक्त मना योग युक्ता मम अवलम्बना