सब से अलग हैंभैया मेरासब से प्यारा हैभैया मेराकौन कहता हैंखुशियाँ हीसब होती हैंजहां मेंमेरे लिए तोखुशियों से भीअनमोल हैंभैया मेरा
वृंदावन का एक साधू अयोध्या की गलियों में राधे कृष्ण - राधे कृष्ण जप रहा था । अयोध्या का एक साधू वहां से गुजरा तो राधे कृष्ण राधे कृष्ण सुनकर उस साधू को बोला - अरे जपना ही है तो सीता राम जपो, क्या उस
एक चीतल हिरण की व्यथा- आप लोग ठीक कह रहे हैं कि मैं एक जानवर हूँ और मुझे जंगल में शिकारी जीवों के बीच ही जीवन की जद्दोजहद करनी है। लेकिन मैं अभी जिस जंगल में रहता हूँ वंहा के शिकारी जानवरों
सत्य भारतीय संस्कृति का सार है। इसमें सत्य को धर्म से भी पहले स्थान दिया गया है। हम सदैव सत्य का ही आचरण करें। भीतर और बाहर की एकता, जिसे सत्य के नाम से पुकारा जाता है, मनुष्यता का सर्वप्रथम गुण है। ह
शुभ संध्या प्रेम नमन्नवधा भक्ति परमू अनूपा उरु अनन्यता भाव फल रुपा।हृदय एक रस प्रेम उमड़ता
विद्वानों ने मनुष्य को एक सामाजिक एवं विचारशील प्राणी के रूप में वर्गीकृत किया है। किसी मनुष्य के सम्पूर्ण व्यक्तित्व व चरित्र का उसके समाज पर प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से प्रभाव अवश्य पड़ता है। ऐस
नियमित योग ध्यान अभ्यास को बनाए रखने से शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को लाभ मिल सकता है। योग विभिन्न प्रकार के होते है और स्वस्थ रहने में सहायता के लिए इसे एक उपकरण के रूप में उपयोग किया जा सकता है
मेरा भारत, इसकी तो इतनी सारी बातें अच्छी है कि ग्रंथ लिख दे तो भी कम पड़े। जो मुझे सबसे निराली बात लगती है वह अध्यात्म है। सारे विश्व में अध्यात्म का कोतुहल है। कोई ढूंढ रहा है अध्यात्म ,तो कोई
माटी से बना मानुष, माटी में मिल जाय।राम नाम को लीजीए, सो जीवन तर जाय।।तिनका तिनका जोड़ के, घरौंदा लियो बनाय।कहे कागा मानुष से, क्यूं न पंख लगाय।।धीरे धीरे से चले, क
संत नवल राम जी माना कि राजस्थान वीरों और वीरांगनाओं की भूमि है, लेकिन केवल वीर भूमि कहना गलत होगा, क्योंकि यह भूमि अपने गर्भ में कुछ और हुनर संचित किए हुए हैं। यहा
धार्मिक विचार दृटि से ईश्वर, देवी-देवता, देव-दूत (पैगम्बर) आदि के प्रति मन में होने वाले विश्वास तथा श्रद्धा के आधार पर स्थित कर्त्तव्यों, कर्मों और धारणाओं को, जो भिन्न-भिन्न जातियों और देशों में अलग
कृष्ण जन्माष्टमी पर्व, जन जन रहा मनाय। वृंदावन धूमे मची, मात तात मुस्काय।। मात तात मुस्काय, जन जन है रहा रिझाय। माखन मटकी फोड़, मोहना चोर कहलाय।। झांकी सज रही है, ख
सनातन धर्म किसी संम्प्रदाय या देश विशेष का धर्म नहीं है। सनातन का अर्थ होता है शाश्वत अर्थात जो अनादि है अंनत है। एक ऐसा धर्म जो समय,परिस्थिति, व्यक्ति, देश आदि से परे है। हर एक सम्प्रदाय का एक ही मूल
मानवता की सिख देता सदियों से चला आया सनातन धर्म,फल की चिंता किए बैगैर ही जो सिखाता किए जा अपने कर्म।