नानी की कहानी
( हास्य व्यंग )
नानी की कहानी तो पूरे जगत में प्रसिद्ध हैं | ननसार की बात और नानी का साथ किसे अच्छा नहीं लगता | अच्छे-अच्छे मूर्ख नानी से कहानी सुन सुनकर महापुरुष बन गए तो मैं किस खेत की मूली हूं | गर्मियों में स्कूल से छुट्टी मिली तो पहुंच गए नानी के यहां , कहानी सुनने , मां के साथ |
नानी के यहां जाने के लिए मैं मां के साथ रेलवे स्टेशन पर पहुंच गया | रेलवे स्टेशन से माँ ने एक टिकट रेल की खरीदी | समय पर रेल गाड़ी आई तो हम मां बेटा रेलगाड़ी में चड़ गए | नानी का स्टेशन आया तो रेल गाड़ी से उतर कर माँ ने एक किलो पेठा खरीद कर थैले में रख लिया और पैदल ही नानी के गांव की तरफ चल दिए | नानी का गांव रेलवे स्टेशन से एक कोस दूर था |
शाम को 4:00 बजे ही हम नानी के घर पहुंच गए | नानी ने बड़े प्यार से मेरे पूरे बदन पर हाथ घुमाया , अरी मेरा बेटा ऐसी दुपहरी में पांयन आयो है , केैसौ पसीना ते भीजि रह्यो है | मैंने नानी के चरण स्पर्श करने से पहले ही एक किलो पेठा नानी के हाथ में थमा दिया, नानी ने उस पेठे को दीवारे में रखी एक गागर में डाल दिया |
नानी का प्यार भरा स्पर्श मेरे बदन को रोमांचित कर गया , उससे भी ज्यादा खुशी रात में नानी से कहानी सुनने की थी | राजा रानी की कहानी, भालू बंदरों की कहानी, देवता और परियों की कहानी, भूत चुड़ैलों की कहानी , शेर हाथी सियारों की कहानी , किसान मजदूर और नंबरदारों की कहानी नानी बड़े चाव से सुनाती थी और मैं भी बड़े ध्यान से सुनता था | कहानी सुनने के लिए मैं रात होने का इंतजार करने लगा |
दिन छिपने से पहले ही मुझे खाना मिल गया , मैंने रोटी खा ली तो नानी ने कहा -- चबूतरे पर तेरे नाना बैठे हैं , जाकर अपने नाना को बुला ला रोटी खाने को , मैं दुबारी में से भागकर चबूतरे पर पहुंच गया , वहां बैठे नाना को उंगली पकड़कर खुशी-खुशी घर ले आया | नाना आंगन में पड़ी खाट पर आकर बैठ गए |
सूर्यदेव अपने घर को चले गए तो बाखर में अंधेरा होने लगा , नानी ने दीवट पर रखी मिट्टी के तेल की कुप्पी जला दी | मुझे कहानी सुनने की बहुत खुशी हो रही थी कि अब तो अंधेरा हो गया नाना के रोटी खाने के बाद नानी मुझको कहानी सुनाएगी | नानी ने नाना को एक थाली में आठ रोटी और कटोरा भर के दाल साथ में एक प्याज का गट्ठा भी दे दिया , पानी का लोटा भर के खाट के नीचे रख दिया |
नाना ने भी मेरी ही तरह बड़े चाव से खाना खाकर पूरा लोटा पानी का खाली कर दिया तब नानी बोली -- पेंठौ खाओ गे , छोरी लाइ एे |
- - ला - लेया एक गांठ
नानी ने गागर में हाथ डालकर एक गांठ निकालकर नाना को दे दी | पेठा खाते ही नाना ने पेठे की गांठ नानी के सर पर दे मारी - - - मेरी समधन की मोतें ही मजाक कर रही है |
पेठे की गांठ नानी के सर में लगकर , कड़ाक बोलकर , उछल कर जमीन पर गिरी तो मैंने लपक कर जमीन से उठा ली और एक गप्पा खींच कर अपने दांतों से काट लिया | मेरे मुंह में मिट्टी ही मिट्टी हो गई- - - यह कैसा पेठा !
तब तक नाना ने नानी की चोटी पकड़ कर दे दना दन कर दिया - - - माटी के डेला कों पेठौ बताइ रही है - समधन की , मोई ते मजाक कर रई है !
नानी ने पेठा उसी का गागर में डाल दिया था जिसमें वह अपने खाने के लिए चूल्हा पोतनी मिट्टी के डेला रखती थी , अंधेरे में नानी पेठा और मिट्टी में अंतर न कर सकीं , इसलिए नाना को पेठे की जगह मिट्टी का ढेला गागर से निकाल कर दे दिया |
नाना तो दे दना दन करके चबूतरे पर चले गए पर मेरी नानी से कहानी सुनने की लालसा अधूरी ही रह गई क्योंकि नानी पिटपिटा आकर गुस्सा में सो गई
इति
लेखक- डॉ विजेंद्र सिंह
9758751864