तीस साल बाद
लेखक- डॉ विजेंद्र सिंह
भाग- 1
मैंने साइकिल कॉलेज के प्रांगण में खड़ी की और सीधा कॉलेज के कार्यालय में पहुंच गया , वहां से मैंने प्रवेश फार्म खरीदा और वापस अपनी साइकिल के पास आ गया | मैं साइकिल के पास खड़ा प्रवेश फार्म को पढ़ ही रहा था कि सीमा मेरे पास आकर बोली - - - अरे सुरजीत तुम यहां कैसे ?
मैंने नजरें उठाकर सीमा की तरफ आश्चर्य से देखा , मैं यहां कक्षा 11 में प्रवेश के लिए प्रवेश फार्म लेने आया था | तुम्हें यहां देख कर खुशी हुई !
मैं तो इसी कॉलेज में पढ़ती हूं और अब शहर छोड़कर तुम भी यही पढ़ोगे ?
हां , शहर 20 किलोमीटर दूर पड़ता है , रेल से आने-जाने में सुविधा रहती है | इस समय आपातकाल ( 1975 में भारत में आपातकाल लगाया गया था ) की स्थिति होने से शहर का माहौल भी बिगड़ रहा है | यह विद्यालय गांव से 10 किलोमीटर दूर है , अत: गांव से ही साइकिल से आता रहूंगा , इसलिए सोचा कि इंटरमीडिएट यहां से कर लूं आगे की पढ़ाई बाद में शहर से कर लूंगा |
यह तुमने बहुत अच्छा सोचा, मेरा भी साथ बन जाएगा, मैं गांव से अकेली ही आती हूँ , अत: आधा रास्ता तो तुम्हारे साथ ही कट जाएगा |
इतना कहकर सीमा अपनी कक्षा में चली गई | मैंने अपनी साइकिल उठाई और कॉलेज के गेट की तरफ चल दिया | अभी मैं कॉलेज के प्रांगण में ही था कि दूर से एक चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी ने आवाज दी - -
- - यह लड़के , तुझे प्रिंसिपल साब बुला रहे हैं - - -
मैंने अपनी साइकिल वही खड़ी की और पुनः कार्यालय की तरफ चल दिया | मैं कार्यालय के दरवाजे में घुसा ही था कि मेरा एक कान प्रधानाचार्य महोदय ने पकड़ कर खींच लिया और दूसरा एक अन्य अध्यापक श्री प्रताप सिंह ने और एक साथ दोनों ने एक एक तमाचे की रसीद भी काट दी |
इस घटना से मैं हक्का-बक्का रह गया और मैंने पूछा- सर मैंने क्या कसूर किया है ?
तभी प्रधानाचार्य महोदय कड़क आवाज में बोले- - क्या बात कर रहा था उस लड़की से ?
- - सर - नहीं सर - - कुछ भी तो नहीं , वही पूछ रही थी , वह मेरी परिचित है |
- - कौन सी कक्षा में पढ़ता है ?
- - सर कक्षा 11 में प्रवेश के लिए आया था |
- - हाई स्कूल कहां से की ?
- - शहर के कॉलेज से |
- - यह शहर नहीं है , गांव है , अभी प्रवेश मिला नहीं और लड़कियों से छेड़खानी शुरू कर दी | यहां पढ़ना है तो अनुशासन में रहना होगा, और चेतावनी देकर मुझे छोड़ दिया | मैं अपनी साइकिल उठाकर कॉलेज से बाहर निकल गया और धीरे-धीरे अपने गांव की तरफ चल दिया |
घटना की चर्चा पूरे कॉलेज में हवा की तरह उड़ गई कि सीमा से छेड़छाड़ के चक्कर में प्रिंसिपल ने एक लड़के की पिटाई कर दी |
दूसरे दिन फार्म व प्रवेश शुल्क जमा करके मैं अपनी कक्षा की तरफ जाने लगा तभी सीमा ने मुझे आवाज दी , उसे सुनकर भी अनसुना करके मैं कक्षा में जा बैठा | कक्षा में घुसते ही लड़के मुझे देखकर हंसने लगे , यह वही लड़का है जिसकी कल पिटाई हुई थी | सीमा को भी घटना की जानकारी थी इसलिए वह बार-बार मुझसे पूछने की कोशिश करती मगर मैं सर झुका कर चुपचाप निकल जाता |
मैं विद्यालय का नया छात्र था , सीमा विद्यालय की पुरानी छात्रा थी , वह अपनी साइकिल कालेज से बाहर एक परिचित के घर खड़ी कर दी थी | वह कला वर्ग की छात्रा थी अत: छठवे घंटे के बाद उसे कॉलेज से छुट्टी मिल जाती , मैं विज्ञान वर्ग का छात्र था सातवां व आठवां घंटा मेरा प्रैक्टिकल का था अतः रास्ते में भी मेरी उससे बात नहीं हो पाती | इस तरह दो महीने व्यतीत हो गए हम दोनों का वार्तालाप न हो सका |
सांय 4:00 बजे आठवां घंटा पूरा होने के बाद में कालेज से बाहर निकला तो देखा कि सीमा सामने वाले घर से साइकिल लेकर निकल रही थी , हम दोनों साथ-साथ गांव की तरफ चल दिए , कुछ दूर निकलने के बाद सीमा बोली - -
- - तुम मुझसे बात क्यों नहीं करते ?
- - दोबारा ए नाम नहीं लेना चांहता - -
- - हां मुझे पता है , यही पूछना चाह रही थी कि पहले दिन कॉलेज में तुम्हारी पिटाई प्रिंसिपल ने क्यों की ? - - मगर तुमने तो मुझसे कोई छेड़छाड़ नहीं की थी
- - फिर भी इनाम मिल गया ऐसा इनाम मैं दोबारा नहीं चाहता
- - अच्छा यह बात है इसलिए तुम मुझसे कटे कटे रहते हो
- - और क्या रोज-रोज प्रिंसिपल से मार खाऊं ! मगर सीमा तुम्हारी छुट्टी तो छठवे घंटे के बाद ही हो जाती है , अब तक यहां कैसे ?
- - तुम्हारा ही इंतजार कर रही थी | सुरजीत कल से ऐसा करो कि मैं जहां साइकिल खड़ी करती हूं तुम भी वही अपनी साइकिल खड़ी कर दिया करो , मेरे परिचित हैं , मैं उनसे कह दूंगी फिर हम दोनों साथ साथ ही गाँव चला करेंगे !
- - मगर सीमा तुम्हारी छुट्टी तो दो घंटे पहले ही हो जाती है , तुम दो घंटे मेरा इंतजार क्यों करोगी ?
- - बुद्धू हो - - मगर कल से साइकिल वही खड़ी करना जहां मैं करती हूं |
इसी तरह बातें करते-करते रास्ता कट गया | दोनों अपने अपने गांव के लिए अलग होने वाले तिराहे पर आ गए तो अलग-अलग अपने अपने रास्ते चल दिए | उस तिराहे से दोनों का गांव लगभग 2- 2 किलोमीटर दूर था अतः उन दोनों के गांव में लगभग 4 किलोमीटर का फासला था | विद्यालय से उस तिराहे की दूरी लगभग 8 किलोमीटर थी अतः 8 किलोमीटर वह दोनों साथ साथ ही आते जाते थे |
भाग- 2
दूसरे दिन में कॉलेज के लिए निकला तो सीमा उसी तिराहे पर खड़ी मिली | दोनों आपस में बात करते हुए कॉलेज तक पहुंच गए | मेरी साइकिल भी सीमा ने वही खड़ी करवा दी जहां वह अपनी करती थी | शाम 4:00 बजे जब मैं कॉलेज से बाहर आया तो सीमा मेरे इंतजार में वही बैठी थी , हम दोनों अपनी अपनी साइकिल लेकर चल दिए | रास्ते भर बातचीत होती रही और उसी तिराहे से अलग अलग होकर अपने अपने गांव के लिए चल दिए | अगले दिन सीमा उसी तिराहे पर खड़ी मिली तो मैंने पूछ ही लिया कि तुम इतनी जल्दी क्यों आती हो ?
- - तुम्हारा इंतजार करती हूं !
- - पर क्यों ?
- - तुम निकल ना जाओ , तुम्हारे साथ रास्ता अच्छा कट जाता है
और हम दोनों कॉलेज के लिए चल दिए , रास्ते में सीमा बोली तुम तो घर जाकर पढ़ते होंगे !
- - हां पढ़ता हूं , क्या तुम नहीं पड़ती !
- - नहीं - -
- - क्यों ?
- - तुम्हारी याद आ जाती है
- - मेरी याद क्यों आती है ?
- - तुम समझते क्यों नहीं , बुद्धू कहीं के !
- - तो तुम समझा दो - -
- - अभी भी नहीं समझे !
- - नहीं
- - नहीं समझे तो चलो कॉलेज
- - बुद्धू नहीं हूं सब समझता हूं , मगर प्रिंसिपल से पुनः इनाम पाना नहीं चाहता हूं |
- - मगर हम कॉलेज में नहीं हैं रास्ते में हैं
- - हां , हम रास्ते में हैं यह मुझे भी मालूम है |
इतना कहकर मैंने अपनी साइकिल खड़ी कर दी और सीमा का चांद सा चेहरा हाथों में लेकर उसके कपोल चूम लिए ,
सीमा का चेहरा शर्म से लाल हो गया वह गोली , हटो बेशर्म कहीं के आम रास्ते पर ही इश्क शुरू कर दिया , चलो कॉलेज और हम दोनों हंसी मजाक करते हुए कॉलेज आ गए |
कॉलेज की छुट्टी के बाद शाम को जब मैं साइकिल नहीं देख घर में घुसा तो वहां सीमा के साथ एक बहू थी जो मुझे देख कर अंदर कमरे में चली गई | सीमा को अकेली देखकर मुझे शरारत सूझी मैंने कहा सीमा एक पप्पी देना और सीमा ने अपना चांद सा चेहरा मेरी तरफ कर दिया मैंने भी एक पप्पी की मोहर उसके कपोलों पर ठोक दी | हम दोनों अपनी- अपनी साइकिल लेकर चल दिए और रास्ते में प्यार की बातें करते करते उसी तिराहे पर आ गए आकर खड़े हो गए | मैंने सीमा को बाहों में भर लिया और अपने अधर उसके कपोल पर रख दिए , सीमा का चेहरा शर्म से रंग बदलने लगा |
रास्ता एकान्त था तथा चारों तरफ मूंज खड़ी थी और सीमा मेरी बाहों में थी | कुछ समय बाद सीमा बोली अब मुझे घर जाने दो |
- - नहीं अभी दिल नहीं भरा
और मैंने सीमा को पुनः बाहों में ले लिया तो सीमा ने भी अपनी बाहें मेरी पीठ पर पहुंचा दी | हम दोनों आलिंगन में बंधे काफी समय तक खड़े रहे तो सीमा ने छटपटा कर कहा अब तो मुझे घर जाने दो काफी देर हो चुकी है मां पूछेगी तो क्या कहूंगी ?
मैंने ना में सर हिलाया तो सीमा छटपटा कर मेरी बाहों से निकल गई और साइकिल लेकर चल दी तो मैंने उसकी चुनरी पकड़ ली वह चुनरी छोड़कर बाय बाय करती हुई चली गई | मैंने उसकी चुनरी को अपने सीने से लगा लिया जैसे सीमा ही मेरे सीने से लगी हो | कुछ समय इंतजार करने के बाद सीमा मेरी आंखों से ओझल हो गई और मैं अपनी साइकिल उठाकर अपने घर की तरफ चल दिया |
अगले दिन सीमा मुझे उसी जगह मिली , मैंने उसकी चुनरी उसे लौटा दी और हम दोनों प्यार की बातें करते हुए कॉलेज पहुंच गए |
कॉलेज के छात्र छात्राओं में हमारे प्यार के चर्चे शुरू हो गए , लड़कियां मुझे देखकर एक दूसरे को बताती की यही है 'सीमा का सुरजीत' लड़के सीमा का नाम लेकर मुझे चिढ़ाने लगे |
सांय 4 बजे जब मैं साइकिल लेने घर में घुसा तो सीमा को अकेली देखकर मैंने कहा , सीमा एक पप्पी देना मगर सीमा मेरी बातें अनसुनी करके चल दी | मुझे हल्का सा दिखावटी गुस्सा भी आया मगर सीमा अपनी धुन में चलती रही | कुछ दूर चलकर सीमा बोली सुजीत तुम्हें मालूम है मैंने तुम्हें वहाँ पप्पी क्यों नहीं दी ?
- - मैंने कुछ बनावटी गुस्से में कहा , मुझे क्या मालूम शायद तुम्हारे नखरे हैं !
सीमा एकदम छटपटा कर बोली - नहीं मैं तुम्हें नखरे नहीं दिखाऊंगी
- - तो क्या बात थी ?
- - कल तुम जब पप्पी ले रहे थे तब कमरे की विंडो से वह बहू देख रही थी ; सीमा ने कुछ शर्माते हुए कहा
- - उसने किसी से कहा तो नहीं ?
- - नहीं उसने किसी से नहीं कहा , मगर आज मुझसे पूछ रही थी कि ऐसी क्या बात थी जो तुम्हारे कान में ही कह रहे थे |
- - फिर तुमने क्या कहा ?
- - मैं क्या कहती ? शर्म से पानी पानी हो गई , उसने सब देख लिया था |
इसी तरह प्रेमालाप करते-करते रास्ता कब कट गया पता नहीं , हम दोनों उसी तिराहे पर आ गए , वही हमारा प्रेम स्थान बन गया , उसी जगह खड़े होकर हम दोनों प्यार की बातें करते व एक दूसरे पर प्यार लुटाते |
अगले दिन मैं कॉलेज जाने के लिए गांव से निकलकर उसी तिराहे पर पहुंचा तो सीमा वहां नहीं थी | मुझे सीमा वहां नहीं मिली ऐसा पहली बार हुआ था | मैं खड़ा सीमा का इंतजार करता रहा कुछ समय इंतजार करने के बाद मैंने सोचा शायद सीमा आगे निकल गई होगी अतः मैं भी अकेला ही साइकिल लेकर कालेज के लिए चल पड़ा | रास्ता काटे नहीं कर रहा था | मैं जैसे तैसे कालेज तक पहुंच गया , साइकिल खड़ी करने के लिए घर में घुसा तो वहां सीमा की साइकिल नहीं थी अतः यह निश्चित हो गया कि सीमा आज कॉलेज नहीं आई है , यही सोच कर मेरा दम ऊपर का ऊपर रह गया और पैरों की हवा निकल गई | मैंने जैसे-तैसे वह दिन कॉलेज में काटा और शाम को किसी हारे हुए जुआरी की तरह अपनी साइकिल लेकर अपने गांव की तरफ चल दिया |
रात्रि में सीमा की याद पुन: सताने लगी , पढ़ाई में मन नहीं लगा तो मैंने सीमा के नाम एक पत्र लिखना शुरू कर दिया - - - -
प्रिय प्रिये
कल मैं बाजार गया था वहां तुम्हारी छोटी बहन छवि मिली थी जो मुझसे पूछ रही थी कि तुम मेरी सीमा दीदी से प्यार करते हो | मेरी क्या हालत हुई यह तुम्हें ही बताऊंगा |
स स्नेह
तुम्हारा प्रिये
पत्र लिखकर मैंने अपनी कॉपी में दवा लिया और चारपाई पर पड़े पड़े सीमा की यादों में खो गया , निंद्रा ने न जाने कब मुझे अपने आगोश में समेट लिया , मुझे ज्ञात नहीं |
अगले दिन सीमा को उसी तिराहे पर खड़ा देखकर मेरा हृदय वलियों उछलने लगा | कल की अनुपस्थिति की लाख शिकायत करने के बाद मैंने सीमा के अधरों पर चुम्बनों की बरसात शुरु कर दी | सीमा ने भी कल की अनुपस्थिति का बहाना मुझे सुना दिया तो हम प्रेमालाप करते हुए कालेज की तरफ चल दिए |
हम दोनों ने अपनी-अपनी साइकिल उसी घर में खड़ी थी तभी मैंने अपना प्रेम पत्र जो रात्रि में लिखा था सीमा के हाथ में थमा दिया और जल्दी से कॉलेज के गेट में घुसकर अपनी कक्षा की तरफ चला गया |
शाम 4:00 बजे जब मैं साइकिल लेने घर में घुसा तो सीमा के चेहरे पर भय और चिंता के भाव साफ दिखाई दे रहे थे | हम दोनों अपनी अपनी साइकिल लेकर घर से बाहर निकल कर गांव की तरफ चल दिए | कुछ दूर चलकर साइकिल पर चलते चलते ही सीमा ने कहा - -
- - क्या कल तुम्हें मेरी छोटी बहन छवि मिली थी ?
- - हां मिली थी
- - सही-सही बताओ तुम्हें कहां से मिल गई ?
- - तो क्या मैं झूठ बोल रहा हूं
- - नहीं , फर वह क्या पूछ रही थी ?
- - वह पूछ रही थी क्या तुम मेरी सीमा दीदी से प्यार करते हो ?
- - मैंने चुटकी लेकर कहा
- - फिर तुमने उससे क्या जवाब दिया ?
- - मैं क्या जवाब देता , हां कहनी पड़ी और शर्म से बेहाल हो गया |
- - क्या मतलब , तुमने छवि को भी बता दिया ! सही सही बताओ मेरा दम निकाला जा रहा है , छवि को कैसे मालूम हुआ ?
- - हां मैं सही सही ही बता रहा हूं , मैं इतना लज्जित हुआ कि मेरी आंख खुल गई और मेरा सपना टूट गया
- - तो क्या तुम सपना देख रहे थे ?
- - और क्या , मैंने हंसते हुए कहा
- - हे भगवान, तुमने तो मेरा दम ही निकाल दिया | आज कॉलेज में मेरा दिन कैसे कटा तुम्हें इसका आभास भी नहीं होगा !
इसी तरह हंसी मजाक करते हुए हम अपने प्रेम स्थान पर पहुंच गए जहां से हमें हमारे रास्ते जुदा होने थे |
रास्ता एकान्त था , चकरोड खेतों से काफी नीचा था तिराहे के आसपास खेतों की मेड़ों पर मूंज खड़ी थी अतः दूर से कोई देख भी नहीं सकता था | ऐसा था हमारा प्रेम स्थल | जहां खड़े होकर हम घंटों प्रेम की बातें करते थे |
फरवरी का महीना था , बसंत ॠुत थी , कॉलेज से वापस आने के बाद मैं और सीमा एक दूसरे के आलिंगन में बंधे हुए खड़े थे , एक दूसरे से प्यार की बातें कर रहे थे , मैं इतना खुश था जैसे सातवें आसमान में उड़ रहा हूं | दीन दुनिया से पूरी तरह बेखबर था | आसमान में सीमा के लिए चांद सितारे चुन रहा था , तभी हमारे प्यार में ग्रहण लग गया | सीमा बोली - - वह देखो सुरजीत दूर , कोई आ रहा है |
मैंने अपनी नजर घुमा कर देखा तो मेरे पैरों तले जमीन खिसक गई हाथ पैर फूल गए , मैंने सीमा से कहा मेरे पिताजी हैं और मैं अपनी साइकिल पर चढ़कर वहां से धर भागा | पिताजी जब तक सीमा के पास पहुंचे तब तक मैं लगभग तीन सौ - चार सौ मीटर दूर निकल कर आंखों से ओझल हो गया | सीमा अपनी साइकिल की चैन पकड़कर वहीं बैठ गई | पिताजी ने पास आकर सीमा से पूछा - - क्या बात है सीमा बेटी ?
- - कुछ नहीं बाबू जी साइकिल की चैन फस गई थी वह मैंने ठीक कर ली
- - और कोई परेशानी तो नहीं !
- - नहीं बाबू जी अब चैन ठीक है मैं गांव जा रही हूं
- - कोई परेशानी हो तो मैं तुझे तेरे गांव तक पहुंचाऊं
- - नहीं बाबू जी मैं तो प्रतिदिन कॉलेज से वापस इसी रास्ते से आती हूं , आराम से घर पहुंच जाऊंगी
इतना कहकर सीमा अपने गांव की तरफ चल दी पिताजी भी अपनी साइकिल लेकर आगे बढ़ गए |
|भाग- 3
इसी तरह पढ़ते लिखते व प्यार करते करते दो साल का समय कब कट गया , हमें पता ही नहीं चला | आखिर वह दिन भी आ गया जब हमें अलग होना था | इंटरमीडिएट उत्तीर्ण करने के बाद हम दोनों ने कालेज में ही बैठकर साथ जीने मरने की कसमें खाई | आज प्रिंसिपल से भी मुझे इनाम का भय नहीं था क्योंकि अब मैं पूर्व विद्यार्थी था , इंटरमीडिएट उत्तीर्ण कर चुका था |
कॉलेज से चलकर हम दोनों उसी तिराहे पर आकर खड़े हो गए | आज सीमा ने मुझे खुद अपने आलिंगन में ले लिया उसके गुलाब जैसे अधर मेरे कपोलों पर घूमने लगे , उसके कोमल हाथ कभी मेरी पीठ पर तो कभी मेरे बालों में कुछ ढूंढ रहे थे | उसके नयनों से अश्रु धारा निकलकर कपोलों पर बहने लगी | उसने रूंधी हुई आवाज में कहा- - सुरजीत कलसे हम कॉलेज नहीं आएंगे तुम मुझे कहां मिलोगे ?
- - अरी पगली मैं मर तो नहीं गया हूं , मिलते ही रहेंगे
- - फिर भी इतना अच्छा समय नहीं मिलेगा !
- - हमारी शादी के बाद तो मिलेगा
- - पता नहीं कब होगी शादी !और वह रोने लगी
- - मैंने अपने अधर उसके कपोल पर रखकर कहा, मेरी नौकरी लग जाएगी तब
- - बहुत लंबा समय है कैसे कटेगा ?
- - क्षण क्षण करके सब कट जाएगा , तुम मेरा इंतजार करना मैं तुम्हें लेने अवश्य आऊंगा
- - पता नहीं विधि ने हमारे भाग्य में क्या लिखा है? फिर भी मैं जिंदगी भर तुम्हारा इंतजार करूंगी और वह सिसकियां भरती हुई साइकिल लेकर धीरे-धीरे अपने गांव की तरफ चलने लगी |
अभी वह कुछ ही दूर निकली थी कि मैंने उसे आवाज दी - - सीमा - - -
वह पागलों की तरह साइकिल वही पटक कर वापस मेरी तरफ भागी और मुझसे लिपटकर फूट-फूट कर रोने लगी- - सुरजीत तुम मुझे भूल तो नहीं जाओगे ?
- - मैंने अपने आंसुओं को पलकों की हदों के अंदर ही रख कर कहा- - नहीं सीमा मैं तुम्हें नहीं भूलूंगा , तुम मेरा इंतजार करना मैं अवश्य आऊंगा | इतना कहकर मैंने अपने अधरों से अंतिम बाद उसके गुलाब जैसे अधरों को चूम लिया |
फिर वह चली गई , जैसे मेरे शरीर से जान निकल कर उसके साथ चली गई हो | मैं वहीं खड़ा उसे तब तक देखता रहा जब तक वह दिखाई देती रही | मैंने नजर उठाकर आकाश की तरफ देखा फिर अपनी साइकिल उठाकर मन पर बोझ लिए अपने गांव की ओर चल दिया |
इंटरमीडिएट करने के बाद मुझे रुड़की इंजीनियरिंग कॉलेज में प्रवेश मिल गया | सीमा की यादें दिल में संजोए में इंजीनियरिंग की पढ़ाई करता रहा | सीमा की याद आती तो मैं उसे चांद तारों में ढूंढने की कोशिश करता , मगर कभी पत्र भी मैंने उसे नहीं लिखा क्योंकि डर था कि पत्र कहीं किसी दूसरे के हाथ न लग जाए | छुट्टियों में कभी-कभी गांव आता तब भी सीमा का कोई कुशल क्षेम मुझे नहीं मिल पाता क्योंकि उसका गांव मेरे गांव से लगभग 4 किलोमीटर दूर था |
पांँच वर्ष का समय मुझे युगों जैसा महसूस हुआ | इंजीनियर बनने के बाद मुझे रेलवे में नौकरी भी मिल गई तब मैंने सीमा से विवाह करने का निश्चय किया और अपने गांव आया | गांव आकर मुझे ज्ञात हुआ कि सीमा का विवाह तो एक वर्ष पूर्व हो गया |
मेरे हृदय में बिजलियां कौंधने लगी , जैसे तड़पाती दामिनी मेरे ऊपर गिर गई हो , सीमा को लेकर मैंने क्या-क्या सपने देखे थे , क्या-क्या अरमान थे मेरे दिल में , सीमा ने मेरे साथ मरने जीने की कसमें खाई थी | जिंदगी भर साथ देने का वादा किया था | मेरे अरमान बिजली ओं की तड़तड़ा हट में कहीं खो गए , सीमा ऐसा कैसे कर गई , सीमा बेवफा निकली वह मुझे धोखा देकर निकल गई |
लाख प्रयत्न करने के बाद भी मैं सीमा को भुला न सका इसलिए मैंने आजीवन अविवाहित रहने का प्रण कर लिया | सीमा की यादों को दिल में संजोए में रेलवे की सेवा करता रहा |
सीमा मुझे धोखा देकर निकल गई वह बेवफा थी मगर मेरा प्यार थी इसलिए उसे गाली देकर मैं अपने प्यार को लज्जित नहीं करना चाहता था | मैं रेलवे का इंजीनियर था इसलिए धन दौलत की कोई कमी नहीं थी कमी थी तो सिर्फ सीमा की | घर के कामकाज के लिए नौकरानी या थी मगर मेरे जीवन की रिक्तियों को भरने के लिए सीमा नहीं थी | सीमा की वीरान यादें , सीमा की स्मृतियों के खंडहर मेरे दिल की भी वीरानियों की दास्तां खुद ही बयां कर रहे थे |
भाग- 4
जुलाई का अंतिम सप्ताह था | आसमान में रह-रहकर दामिनी दमक रही थी | प्रकृति ने जैसे धरा को हरे रंग से रंग दिया हो , चारों तरफ हरियाली की सुंदर छटा हृदय को प्रफुल्लित कर रही थी | प्रकृति का अद्भुत सौंदर्य महसूस करने के लिए मैं भी रेलवे से एक सप्ताह की छुट्टी लेकर अपने गांव पहुंच गया |
गांव पहुंचने पर मुझे ज्ञात हुआ कि कल सीमा के पिताजी की अंत्येष्टि है , वहां से ब्रह्म भोज का निमंत्रण भी आया है | मेरा वहां जाने का कोई इरादा तो नहीं था , न ही मुझे पहले से कुछ ज्ञात था और न ही मैं सीमा के गांव जाने के लिए छुट्टी लेकर आया था , मगर जब मैं गांव में आ ही गया हूं और वहां जाने का बहाना भी है तो मैं उस सीमा से मिलने अवश्य जाऊंगा जो तीस साल पहले मेरी थी , जिसने मेरे साथ जीने मरने की कसमें खाई थी , सपने देखे थे , मेरा जिंदगी भर इंतजार करने का वादा किया था |
मेरे हृदय को उससे प्रेम की तो कोई आशा नहीं है मगर उससे पूछ लूंगा अवश्य कि क्या वह अपनी जिंदगी से संतुष्ट है !क्या मुझे विरानो में धकेल कर वो खुश है ! जिंदगी भर इंतजारी का दम भरने वाली सीमा पाँच वर्ष का इंतजार न कर सकी ! क्या खोट था मेरे प्यार में ? तरह तरह के प्रश्न मैं अपने मस्तिष्क में बुनता रहा |
तीस साल बाद उससे मुलाकात होगी | तीस साल पुरानी उसकी तस्वीर आज भी मेरे हृदय पटल पर अंकित है | अब कैसी होगी ? मैं उसे पहचान पाऊंगा या नहीं ? पहचान भी ली तो वह मेरे प्रश्नों का उत्तर देगी या नहीं ? जो भी हो उसे अंतिम बार देखने की तड़प मेरे दिल में उठने लगी |
दूसरे दिन में हृदय में बिना कुछ सोचे समझे हुए , बिना ड्राइवर के गाड़ी को खुद चला कर उसके गांव पहुंच गया | मेरी निगाहें सीमा को ढूंढ रही थी मगर लोगों ने देखा कि इंजीनियर साहब आए हैं तो मुझे खाना खाने बैठा दिया | खाना खाकर मैं बाहर निकला तो मैंने देखा कि मेरे सामने से जो गुजर गई शायद यही सीमा थी | चेहरे पर उम्र का तकाजा साफ झलक रहा था कहीं दूसरी जगह मिलती तो मैं उसे पहचान ही नहीं पाता | यहां तो मैं उसी के लिए आया था इसलिए कुछ अंदाज लगा लिया कि यही सीमा है | मैने दूर से ही आवाज दी- - सीमा , वह रुक गई और पीछे मुड़कर मुझे देखने लगी | मैंने पूछ लिया क्या तुम सीमा हो ?
- - हां- मैं सीमा हूं
- - मुझे पहचाना !
- - उसने सर हिलाकर - - नहीं
- - मैं सुरजीत हूं
सीमा के चेहरे पर कई रंग आए और चले गए , थोड़ा शरमा कर बोली - - इतने दिनों बाद आए हो ?
- - यही पूछने आया था कि मुझे वीराने में धकेल कर तुम कितनी खुश हो , मेरी जिंदगी तो तुम्हारे इंतजार में तबाह हो ही गई ,क्या तुम अपनी जिंदगी से संतुष्ट हो ?
- - मैं तो एक जिंदा लाश की तरह तुम्हारा इंतजार कर रही हूं , क्या तुम भी मेरा इंतजार कर रहे थे ?
- - जब तुम ने विवाह कर ही लिया तो मेरा इंतजार करने से अब क्या लाभ ?
- - कौन सा विवाह ? किस का विवाह ? किस विवाह की बात कर रहे हो तुम ? खैर छोड़ो मेरी जिंदगी तो तुम्हारे इंतजार में ही कट गई मगर तुम्हारे पत्नी, बच्चे और परिवार कैसा है |
- - तुम्हारी बेवफाई से दुखी होकर मैंने विवाह ही नहीं किया तो मेरे पत्नी बच्चे कहां से आए !
- - हे भगवान ! तो तुमने विवाह नहीं किया ?
- - नही
इतना सुनते ही सीमा मेरा हाथ पकड़ कर भीड़ से अलग छत पर बने हुए एक कमरे में मुझे ले आई और मुझसे लिपटकर फूट-फूट कर रोने लगी |
- - अब रो क्यों रही हो , क्या अपने परिवार से संतुष्ट नहीं हो !
- - कौन सा परिवार- - वह बोली
- - तुम्हारा पति- - तुम्हारे बच्चे
- - सुरजीत , मैंने तुमसे प्रेम किया था और जिंदगी भर तुम्हारा इंतजार करने का तुमसे वादा भी किया था | मैं आज भी अपना वादा निभा रही हूं , मैं आज भी तुम्हारा इंतजार कर रही हूं , और मरते दम तक करती रहूंगी |
- - मगर मैंने तो सुना था तुम्हारा विवाह हो गया !
- - हुआ था , मगर मेरा नहीं , उसी दिन से मैं जिंदा लाश बन कर तुम्हारा इंतजार कर रही हूं |
- - हुआ था मगर मेरा नहीं, क्या कहना चाहती हो मैं कुछ समझ नहीं पा रहा हूं , साफ-साफ बताओ |
- - सुरजीत तुम्हारे जाने के बाद मेरे पिताजी ने मेरे विवाह की बात चलाई तो मैंने तुम्हारे इंतजार में विवाह करने से मना कर दिया | मैंने तुम्हारे साथ विवाह का प्रस्ताव भी रखा तो उन्होंने यह कहकर मना कर दिया कि वहां तो हमारी भाई बंदी है तुम्हारा विवाह सुरजीत से नहीं हो सकता , तो मैंने भी अपना फैसला सुना दिया कि मैं कहीं दूसरी जगह विवाह नहीं करूंगी |
- - फिर क्या हुआ
- - उन्होंने बिना मेरी सलाह के दूसरी जगह मेरा विवाह यह सोचकर तय कर दिया कि लड़की ही है शरमा कर मना कर रही होगी , उसे किसी तरह मना ही लेंगे | मेरे विवाह के कार्ड छपे, निमंत्रण भेजे गए, रिश्तेदार आने लगे और समय पर बारात भी दरवाजे पर आ गई |
- - मेरी उत्सुकता बढ़ती जा रही थी मैंने पूछा- - आगे क्या हुआ ?
- - दरवाजे पर बारात तो आ गई पर मैंने विवाह करने से मना कर दिया तब मेरे पिताजी ने अपनी पगड़ी उतार कर मेरे पैरों पर रख दी और बोले- बेटी मेरी इज्जत अब तेरे हाथ है | मैंने उनकी पगड़ी उठा कर उनके सर पर रख दी और उनसे कहा आप मेरे लिए जहर ला दे , मैं उसे खाकर भाँवर डलवा लूंगी जिससे आपकी इज्जत बच जाएगी और मेरी मर्यादा भी बनी रहेगी | पिताजी गुस्से में आकर बोले मैं यही समझ लूंगा कि तू ने जहर खा लिया , आज से तू मेरे लिए मर गई तू जिंदा लाश बन कर ही रहेगी |
- - फिर क्या हुआ !
- - फिर पिताजी ने सब से छुपा कर मेरी छोटी बहन छवि की भाँवर डालकर विदा कर दिया | दुनिया की नजरों में वह विवाह मेरा ही हुआ था | पिताजी तो अब दुनिया से चले गए मगर मैं अब भी जिंदा लाश बन कर तुम्हारा ही इंतजार कर रही हूं |
इतना कहकर सीमा की आंखों के आंसू पलकों की हद तोड़ कर कपोलों पर फिसलने लगे |
जिस सीमा को मैं आज तक बेवफा समझता रहा, उसे गालियां देता रहा , वही सीमा आज भी मेरा ही इंतजार कर रही है | यही सुनकर मेरे नयनों से अश्रु धारा बहने लगी उन्हीं आंसुओं में सब गिले-शिकवे बह गए | मैंने सीमा को बाहों में भर कर भारी हुए गले से कहा अब अपने घर चलो | सीमा का हाथ थाम कर मैं उसे गाड़ी तक ले आया और उसे गाड़ी में बिठा लिया | मैं ड्राइवर सीट पर था मेरी बगल वाली सीट पर सीमा | गाड़ी चलने लगी तब मैंने कहा सीमा एक पप्पी देना - -
सीमा ने शर्म से अपना चेहरा आंचल में छुपा लिया |
इति
लेखक- डॉ विजेंद्र सिंह
9758751864