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रचना कौशल

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'अपरिभाषित ज़िन्दगी'

30 अप्रैल 2019
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क्या कहूँ, कि ज़िन्दगी क्या होती है कैसे यह कभी हँसती और कभी कैसे रो लेती है हर पल बहती यह अनिल प्रवाह सी होती है या कभी फूलों की गोद में लिपटीखुशियों के महक का गुलदस्ता देती हैऔर कभी यह दुख के काँटो का संसार भी हैहै बसन्त सा

मैं का भाव

8 अप्रैल 2019
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अपनापन, भाईचारा'मैं' के भाव ने सब को माराइस में अपनेपन की छाँव नहीं'मैं' हूँ, 'हम' का भाव नहीं 'मैं' में स्वार्थ हरा-भरा लालच में लिपटा, अपने निमित्त 'मैं' से आपस का भाईचारा मराऊपर उठने की मनसा'हम' का मनोभाव नहीं 'मैं' के उद्धार करण मेंऔरों की बड़ती से मन झुलसा

आतंकवाद

27 मार्च 2019
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घबराहट है, डर का साया है आतंकवाद ने घमासान मचाया हैमजहब या कि जिहाद के नाम पर आतंकवाद ने मौत का खेल खिलाया हैआतंकी किस मजहब का ? यह तो मानवता का दुश्मनइसमें बस आतंक समाया है मासूमों की जान से खेलाआतंकी ने सब में डर को है घोलायह ना हिन्दु, ना यह मुस्लिम यह तो ब

'भव-सागर'

17 मार्च 2019
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भव सागर, यह संसार है जीवन, सागर मझधार हैघोर, गहन विपदा है घेरेजीवन में है, तेेरे और मेरे झंझावत ढेरों पारावार हैलहरों से उठती, हुँकार है आशा और निराशा इसमेंजीवन की दो पतवार है निराशा से होता कहाँ ?जन-जीवन का उद्धार हैआशा से ही लगती यहाँनौका तूफानों से पार हैभव-स

महिला

8 मार्च 2019
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महिला

8 मार्च 2019
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'महिला' सृष्टि का अनमोल ख़जाना महिला है बहुत महाना त्याग, बलिदान की सच्ची मूरत नारी की है सृष्टि पर

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