अपनापन, भाईचारा
'मैं' के भाव ने सब को मारा
इस में अपनेपन की छाँव नहीं
'मैं' हूँ, 'हम' का भाव नहीं
'मैं' में स्वार्थ हरा-भरा
लालच में लिपटा, अपने निमित्त
'मैं' से आपस का भाईचारा मरा
ऊपर उठने की मनसा
'हम' का मनोभाव नहीं
'मैं' के उद्धार करण में
औरों की बड़ती से मन झुलसा
'मैं' मानवता का दुश्मन
नहीं बसता इस मेें दया, धर्म
अपने से आगे सोच नहीं
'मैं' के गबन में अफसोस नहीं
अपनी भरता, स्वार्थ है करता
'मैं' से 'हम' है मरता
'मैं' का भाव जहाँ-जहाँ
मानवता नहीं बसती वहाँ
इस में छल-कपट, धोका करता
'मैं' से भरकर 'हम' नहीं चलता
यह तो सहयोग को खा गया
'मैं' होकर अपनापन
स्वार्थ की सूली चढ़
इस दुनिया से चला गया ।