*"जनरेशन गैप क्या है इससे कैसे निपटें"*
*पीढ़ियों का अन्तराल क्या है?*
पीढ़ियों के अन्तर को अंग्रेजी भाषा में जनरेशन गैप भी कहते हैं। यह अनेक पहलुओं में दृष्टिगोचर होता है। यह उन पहलुओं पर भी काम करते हुए देखा जा सकता है जिनकी प्राय: कोई कल्पना भी नहीं कर सकता है।
*जनरेशन गैप कहां कहां होता है*
जनरेशन गैप कई स्तरों पर काम करता है। जनरेशन गैप विशेषकर शारीरिक आयु, शिक्षा, संस्कृति, सामाजिक व नैतिक अवधारणाएं, अंतःप्रज्ञा की प्रौढता और जीवन के प्रैक्टिकल अनुभवों के आधार पर काम करता है। ये छहः चीजें ऐसी हैं जिनके आधार पर मनुष्य का एटीट्यूड और उसकी अंडरस्टैंडिंग की गुणवत्ता का परिवर्तन निर्भर करता है। इन छह: चीजों की सघनता, विरलता में नित नयेपन की समझ बनने और जुड़ने से मनुष्य की मानसिक/बौद्धिक वा भावनात्मक स्थिति आमूल बदल जाती है। इसे ही जनरेशन गैप कहते हैं।
शारीरिक आयु या वर्षों के अन्तराल की दृष्टि से इसे समझें। लगभग 2500 वर्षों के पहले का जमाना था जब यह सोचा जाता था कि जनरेशन गैप लगभग पिछत्तर - अस्सी साल के बाद बदलता है। यानि एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी आने में पिछत्तर - अस्सी साल लगते थे। उससे भी पहले इसकी समय सीमा लगभग सौ साल थी। जैसे जैसे समय आगे बढ़ता गया, अलग अलग प्रकार के परिवर्तनों की प्रक्रिया तीव्र होती गई। इसलिए धीरे धीर इस जनरेशन गैप की समय सीमा कम होती गई है। लगभग 30 से 35 साल के जनरेशन गैप की समय का तो हमें बखूबी स्मरण है। अनुभव कहता है कि हमारे देखते देखते ही यह जनरेशन गैप की सीमा 25 वर्षों पर आई। फिर 20 वर्षों पर आई। फिर यह समय सीमा 15 वर्ष की हो गई। अब जनरेशन गैप 10 वर्ष का हो गया है। संभावना यह है कि जैसे जैसे आधुनिक विज्ञान, तकनीकी और अध्यात्म विज्ञान विकसित हो रहे हैं वैसे वैसे यह जनरेशन गैप की समय सीमा और भी ज्यादा कम होती जायेगी।
*आध्यात्मिक/अलौकिक जनरेशन गैप भी*
जिस तरह से लौकिक दृष्टि से जनरेशन गैप होता है। ठीक वैसे ही ही अध्यात्मिक दृष्टि से भी जनरेशन गैप होता है। आध्यात्मिक दृष्टि से जनरेशन गैप की समय सीमा का कुछ भी निश्चित निर्धारण नहीं किया जा सकता है। इसकी समय सीमा प्रत्येक व्यक्ति पर अलग अलग प्रकार से निर्भर करती है। यह व्यक्ति की प्रखरता और पुरुषार्थ की त्वरा पर निर्भर करता है। अध्यात्म मार्ग में चलते हुए भी हमारे अनुभव और समझ बनते जाते हैं। बनते बनते वे जुड़ते अर्थात् इकट्ठे भी होते जाते हैं। ये अनुभव भी हमारे विभिन्न प्रकार के पुरुषार्थ को बढ़ाने और हमारी समझ को बढ़ाने की त्वरा पर निर्भर होते हैं। इसलिए हर क्षेत्र में नंबरवार पुरुषार्थ अनुसार या पुरुषार्थ अनुसार नंबरवार कहा जाता है। फिर भी सामान्य रूप से अध्यात्म के जनरेशन गैप को सात से दस साल तक की सीमा का माना जा सकता है।
*जनरेशन गैप की कैमिस्ट्री क्या है*
जनरेशन गैप में अनेक परिवर्तनों और अनुभवों के आधार पर मनुष्य की मानसिक और बौद्धिक समझ में बदलाव आता है। यह बदलाव विभिन्न प्रकार की उन्नति की ओर गति करने वाला भी हो सकता है। यह बदलाव विभिन्न प्रकार की अवनति की ओर भी गति करने वाला हो सकता है। यह बदलाव आते ही मनुष्य का आउटलुक और जीवन व्यवहार बदल जाता है। यह जरूरी नहीं है मनुष्य का यह आउटलुक उसका आउटलुक ही बना रहे। नहीं। आउटलुक के साथ समय के अंतराल में दोहरी घटना घटती है। वह आउटलुक आंतरिक स्थिति को बदलता है। उसका आउटलुक उसके भीतरी के संस्कार का हिस्सा (इनलुक) बन जाता है। जैसा जिसका इनलुक होता है वैसा ही उसका आउटलुक स्वत स्वभावत काम करने लगता है। एक ऐसी स्थिति बनती है जब आउटलुक और इनलुक में अन्तर कर पाना मुश्किल होता है। दोनों एक हो जाते हैं। वह आउटलुक दोनों तरफ से एक साथ काम करता है। वह डबल एरोड हो जाता है।
*जनरेशन गैप की पॉजिटिविटी और नेगेटिविटी*
जनरेशन गैप अपने साथ दोनों तरह की परिस्थिति पैदा करते हुए चलता है। जनरेशन गैप में विकास भी हो सकता है। लेकिन साथ साथ में कई समस्याएं भी इसके भाग्य में अनिवार्य रूप से लिखी हुई होती हैं। जनरेशन गैप पारस्परिक नजदीकियां भी लाता है और दूरियां भी बनाता है। कहीं किन्हीं परिस्थितियों में पारस्परिक मानसिक, भावनात्मक और बौद्धिक अवधारणाओं (आउटलुक) की समानता भी हो सकती है। कहीं किन्हीं परिस्थितियों में पारस्परिक मानसिक, भावनात्मक और बौद्धिक अवधारणों में समानता नहीं भी हो सकती है। जहां समानता होती है वहां व्यक्ति स्वयं को कंफर्टेबल फील करता है। मुश्किल असमानता के साथ होती है।
*जनरेशन गैप (आंतरिक वा बाहिय अन्तर) समस्या भी है और वरदान भी*
जब आंतरिक समानताएं नहीं मिलती हैं। तो कई परिस्थिति में ये वाकई समस्याओं की स्थिति पैदा करती हैं। परस्पर संवाद या कम्युनिकेशन होने में कठिनाई पैदा होती है। यदि कम्युनिकेशन होता भी है तो भी पारस्परिक मानसिक भावनात्मक और बौद्धिक स्तर की बातें समझ में नहीं आती हैं। कल्पना करिए यदि कोई व्यक्ति आपकी भाषा को नहीं समझते हों और आप भी उस व्यक्ति की भाषा को नहीं समझते हों तो परिस्थिति कितनी कठिन हो जाती है। फिर अपनी असमानताओं के साथ प्रायः हम क्या करते हैं? हम असमानताओं को स्थूल दृष्टि से समान करने की, मिलाने की कोशिश करते हैं। या हम अपने पूर्वाग्रहों की नॉलेज के द्वारा समझाने बुझाने को कोशिश करते हैं। ये दोनों ही कोशिशें बिल्कुल मूर्खतापूर्ण बात होती हैं। हम पहले कह आए हैं कि जनरेशन गैप का मुख्य कारण ही आंतरिक मानसिक भावनात्मक और बौद्धिक समझ का विकास का अन्तर है। हम जानते हैं कि ज्ञान और अनुभव विकसित होते और बदलते रहते हैं। और हम बिल्कुल उल्टा करते हैं। हम अपने आउटडेटेड ज्ञान (पूर्वाग्रह) से समानता लाने की कोशिश करते हैं। हम इस तरह की समानता करते कराते रहते हैं कि कुछ स्थूल में या कैसे भी समानता हो जाए तो अच्छा हो जाए। यह तो ऐसा ही हुआ कि बुढिया की सुईं घर के अन्दर खोई है और वह सुईं को ढूंढ रही है घर के बाहर।नहीं। कम से कम जनरेशन गैप की उनकी पारस्परिक आंतरिक अंडरस्टैंडिंग के साथ तो ऐसा नहीं हो सकता है। जनरेशन गैप वरदान भी है। क्योंकि यह विकास और सुख शांति के द्वार खोलता है। जनरेशन गैप अभिशाप भी बन जाता है। क्योंकि यह दुखद और अशांत परिस्थितियों के द्वार भी खोलता है।
*युगों का भी गैप होता है। स्थिति पुनः रिवर्स होगी।*
निकट भविष्य में जनरेशन गैप फिर करवट बदलेगा। अब यह जनरेशन गैप नहीं होगा बल्कि युगों का गैप होगा। कल्प का चक्र वर्तुलाकार है। पुनः कल्प बदलेगा। नए कल्प का आगाज होगा। यह युगों का गैप होगा। इसमें कलयुग की जगह सतयुग लेगा। भौतिक और आध्यात्मिक विकास अपने चरम पर पहुंचेगा। भौतिक और आध्यात्मिक विकास की अपनी पूर्णता के बाद जनरेशन गैप की स्थिति फिर से रिवर्स होगी। पीढ़ियों का अन्तर (जनरेशन गैप) वापिस अपने लगभग सौ और अस्सी सालों पर लौट आएगा। इस जनरेशन गैप (युगों का गैप) की स्थिति बनने में अंतर्दृष्टि यह है कि प्रकृति बहुत गहरे में अपने में संतुलन बनाते हुए चलती है।
*जनरेशन गैप - मान कर चलिए*
यह मान कर चलिए कि जनरेशन गैप अच्छा या खराब नहीं होता। जनरेशन गैप अपने आप में यूनीक (अदभुत) होता है। जनरेशन गैप की परिस्थिति सदा से रही है और रहेगी।छोटों को पुरानों को समझने की कोशिश करनी चाहिए। पुरानों को छोटों को समझने की कोशिश करनी चाहिए। एल्डर्स और यंगर्स को परस्पर समझने की कोशिश करनी चाहिए। इसके लिए परिवर्तनों के नए दौर को समझने और स्वीकार करने की शक्ति होनी चाहिए। पारस्परिक संवाद करने की शक्ति होनी चाहिए।
पुराना नया बनता रहता है। पुराने से नया निकलता रहता है। जब नया और पुराना दोनों होते हैं तब पुराने और नए में एक प्रकार का द्वंद चलता है। जनरेशन गैप एक प्रकार की द्वंदात्मक स्थिति निर्माण करता है। द्वंदात्मक स्थिति एक प्रकार से गति देने का काम करती है। इसे विश्व ड्रामा में इनबिल्ट ही समझ लीजिए। जैसे अनवरत परिवर्तन विश्व ड्रामा में इनबिल्ट है। वैसे ही यह जनरेशन गैप भी विश्व ड्रामा में इनबिल्ट है। ऐसा समझो कि यह जनरेशन गैप परिवर्तनों की श्रंखला का ही बायोप्रोडक्ट है। इसे किसी भी तरह से रोका नहीं जा सकता है। इसमें ज्यादा हताश परेशान होने की आवश्यकता नहीं है। सिर्फ इसकी समझ (विवेक) चाहिए। इसलिए ऐसा मान कर ही चलिए कि यह जनरेशन गैप की समस्याएं थीं, हैं और रहेंगी। विचार कीजिए पुराने लोगों को नए दौर के लोगों को समझने में कठिनाई तो स्वाभाविक रूप होगी ही ना। सदा ही नया पुराने की जगह लेता रहता है। फिर भी पुराना एकदम से यकायक समाप्त नहीं हो जाता है। वह भी एक निश्चित समय तक के लिए बना रहता है। दोनों का अस्तित्व अपनी जगह टिका रहता है और चलता रहता है। कुछ समय के अंतराल में एक ऐसा समय भी आता है जब पुराना प्राय: लोप हो जाता है। उसके बाद नया भी पुराना बन जाता है। क्योंकि तब तक नया आ गया होता है।
*कर्मों की किताब और जनरेशन गैप*
विश्व ड्रामा को कोई भी चैलेंज नहीं कर सकता है। इस विश्व ड्रामा में एक कर्मों की भी रहस्यमय और गुप्त किताब है। उस कर्मों की किताब को भी कोई चैलेंज नहीं कर सकता है। उस किताब में प्रत्येक आत्मा के लिए एक पन्ना (पेज) निश्चित है। इस किताब की मानें तो कहा जा सकता है कि इस किताब के अनुसार ऐसा भी हो सकता है कि जनरेशन गैप की सभी समस्याएं समाधानों में भी बदल सकती हैं। और यदि किताब आपकी समस्याओं के समाधान साथ compatible (सहवर्तनीय/अनुकूल) नहीं है तो जनरेशन गैप की समस्याएं केवल समस्याएं ही बनी रह सकती हैं। उस स्थिति में जनरेशन गैप की परिस्थिति से निपटने के लिए मनुष्य का विवेक और हुनर ही काम आ सकता है। जनरेशन गैप की ऐसी स्थिति से निपटने के लिए अध्यात्मिक प्रज्ञा का भी बहुत सहयोग होता है।🙏🌹