आशुतोष राणा
आशुतोष रामनारायण नीखरा, जिन्हें पेशेवर रूप से आशुतोष राणा के नाम से जाना जाता है, एक भारतीय अभिनेता, निर्माता, लेखक और टेलीविजन व्यक्तित्व हैं। उन्होंने मराठी, तेलुगु, कन्नड़, तमिल और हिंदी फिल्मों में काम किया है। उन्होंने भारतीय टेलीविजन शो में भी काम किया है। उन्होंने दुश्मन और संघर्ष के लिए दो फिल्मफेयर पुरस्कार भी जीते हैं। उन्होंने नकारात्मक भूमिका में फिल्मफेयर पुरस्कारों की श्रेणी में ये पुरस्कार जीते। उन्हें नकारात्मक भूमिकाओं के चित्रण के लिए जाना जाता है। अभिनेता होने के साथ-साथ वह एक लेखक भी हैं। उनकी लिखी कुछ किताबें 'मौन मुस्कान की मार' और 'रामराज्य' हैं। इनका जन्म 10 नवंबर 1964 को गुजरात राज्य के खेड़ा जिले के कपडवांज शहर में हुआ। उनका बचपन गडरवारा में बीता, जहाँ उन्होंने अपनी प्राथमिक शिक्षा पूरी की। वह स्थानीय रामलीला प्रस्तुतियों में रावण की भूमिका निभाते थे। वह नर्मदापुरम (लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र) के दो बार सांसद और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के राज्य उपाध्यक्ष रामेश्वर नीखरा के चचेरे भाई हैं। वह राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय, नई दिल्ली गए और अभिनय का अध्ययन किया। उन्होंने पृथ्वी थिएटर में सत्यदेव दुबे के साथ कई नाटक किए हैं। राणा ने बॉलीवुड अभिनेत्री रेणुका शहाणे से शादी की है। उनके दो बेटे शौर्यमन और सत्येंद्र हैं।
रामराज्य
प्रसिद्ध फिल्म अभिनेता आशुतोष राना की यह पुस्तक मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के जीवन-दर्शन पर आधारित है। उन्होंने अपनी विशिष्ट लेखन शैली में उन प्रसंगों की व्याख्या की है जो आमजन के मस्तिष्क में उमड़ते-घुमड़ते रहे हैं। पुस्तक इतनी रोचक है कि एक बार पढ़ना
रामराज्य
प्रसिद्ध फिल्म अभिनेता आशुतोष राना की यह पुस्तक मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के जीवन-दर्शन पर आधारित है। उन्होंने अपनी विशिष्ट लेखन शैली में उन प्रसंगों की व्याख्या की है जो आमजन के मस्तिष्क में उमड़ते-घुमड़ते रहे हैं। पुस्तक इतनी रोचक है कि एक बार पढ़ना
मौन मुस्कान की मार
मैंने और अधिक उत्साह से बोलना शुरू किया, ‘‘भाईसाहब, मैं या मेरे जैसे इस क्षेत्र के पच्चीस-तीस हजार लोग लामचंद से प्रेम करते हैं, उनकी लालबत्ती से नहीं।’’ मेरी बात सुनकर उनके चेहरे पर एक विवशता भरी मुसकराहट आई, वे बहुत धीमे स्वर में बोले, ‘‘प्लेलना (प
मौन मुस्कान की मार
मैंने और अधिक उत्साह से बोलना शुरू किया, ‘‘भाईसाहब, मैं या मेरे जैसे इस क्षेत्र के पच्चीस-तीस हजार लोग लामचंद से प्रेम करते हैं, उनकी लालबत्ती से नहीं।’’ मेरी बात सुनकर उनके चेहरे पर एक विवशता भरी मुसकराहट आई, वे बहुत धीमे स्वर में बोले, ‘‘प्लेलना (प