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मौन मुस्कान की मार

आशुतोष राणा

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30 मई 2022 को पूर्ण की गई
ISBN : 9789352669820

मैंने और अधिक उत्साह से बोलना शुरू किया, ‘‘भाईसाहब, मैं या मेरे जैसे इस क्षेत्र के पच्चीस-तीस हजार लोग लामचंद से प्रेम करते हैं, उनकी लालबत्ती से नहीं।’’ मेरी बात सुनकर उनके चेहरे पर एक विवशता भरी मुसकराहट आई, वे बहुत धीमे स्वर में बोले, ‘‘प्लेलना (प्रेरणा) की समाप्ति ही प्लतालना (प्रतारणा) है।’’ मैं आश्चर्यचकित था, लामचंद पुनः ‘र’ को ‘ल’ बोलने लगे थे। इस अप्रत्याशित परिवर्तन को देखकर मैं दंग रह गया। वे अब बूढ़े भी दिखने लगे थे। बोले, ‘‘इनसान की इच्छा पूलती (पूर्ति) होना ही स्वल्ग (स्वर्ग) है, औल उसकी इच्छा का पूला (पूरा) न होना नलक (नरक)। स्वल्ग-नल्क मलने (मरने) के बाद नहीं, जीते जी ही मिलता है।’’ मैंने पूछा, ‘‘फिर देशभक्ति क्या है?’’ अरे भैया! जरा सोशल मीडिया पर आएँ, लाइक-डिस्लाइक (like-dislike) ठोकें, समर्थन, विरोध करें, थोड़ा गालीगुप्तार करें, आंदोलन का हिस्सा बनें, अपने राष्ट्रप्रेम का सबूत दें। तब देशभक्त कहलाएँगे। बदलाव कोई ठेले पर बिकनेवाली मूँगफली नहीं है कि अठन्नी दी और उठा लिया; बदलाव के लिए ऐसी-तैसी करनी पड़ती है और करवानी पड़ती है। वरना कोई मतलब नहीं है आपके इस स्मार्ट फोन का। और भाईसाहब, हम आपको बाहर निकलकर मोरचा निकालने के लिए नहीं कह रहे हैं; वहाँ खतरा है, आप पिट भी सकते हैं। यह काम आप घर बैठे ही कर सकते हैं, अभी हम लोगों ने इतनी बड़ी रैली निकाली कि तंत्र की नींव हिल गई, लाखों-लाख लोग थे, हाईकमान को बयान देना पड़ा। मैंने कहा कि यह सब कहाँ हुआ, बोले कि सोशल मीडिया पर इतनी बड़ी ‘थू-थू रैली’ थी कि उनको बदलना पड़ा। प्रसिद्ध सिनेमा अभिनेता आशुतोष राणा के प्रथम व्यंग्य-संग्रह ‘मौन मुस्कान की मार’ के अंश। 

maun muskaan kii maar

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आशुतोष राणा द्वारा लिखित मौन 'मुस्कान की मार' सिर्फ एक किताब नहीं है, अपितु व्यंग्य की ऐसी अद्भुत धार है जो आज के सन्दर्भ में समाज कि हर सच्चाई से अवगत कराती है! इसमें लिखी हर कथा एवं उसके पात्र हमें अपने इर्द गिर्द ही महसूस होते है, कहानियों में श्रेष्ठ के शब्दों का चयन ठेठ ज़मीन से जुड़ा लगता है एवं ज़ेहन में मिट्टी की सौंधी खुशबू देता है, समाज को जाग्रत करने के इस भगीरथ प्रयास में हम सभी को उनका सहयोग करना चाहिए! जितने अच्छे कलाकार उतने ही अच्छे कलमकार। आशुतोष राणा जी ने इस पुस्तक में कमाल ही किया है। यदि कुछ पढ़ना है तो इसे पढ़ें। ऐसे सटीक व्यंग मिलेंगे वर्तमान पर कि आप सोचते रह जायेंगे कि इतनी साफगोई और ऐसी शिल्प से भी लिखा जा सकता है, मुस्कान की मार एक बहुत ही शानदार व्यंग्य रचना है उसमें निहित चरित्रो को आप अपने आसपास पाएंगे लेखक की सूक्ष्म निरीक्षण दृष्टि पात्रों का चयन आपको हंसने गुदगुदाने के साथ सोचने पर भी मजबूर करता है .. पात्रों का भोलापन उनकी चालाकी उनकी लाचारी बेचारी सारे भाव लेखक ने जिस तरह से लिखे हैं सिद्ध करते हैं कि लेखक मानव मन को पढ़ने की अद्भुत क्षमता रखते है!

पुस्तक की झलकियां

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