। फिर संघर्ष क्या सामूहिकता का निर्माण नहीं कर रहा? अगर किसानों के नाम पर किया जाने वाला संघर्ष उनकी लाचारी को अपनी ताकत बनाकर कामयाब होना चाहेगा तो यह जनतंत्र का सबसे नाकामयाब क्षण होगा। जनतंत्र सिर्फ चुनाव से नहीं चलता। संसद के मुकाबले वह सड़क पर आकार लेता है। जनता की गोलबंदी, लोगों के एक-दूसरे के करीब आने, अपने खून के रिश्तेदारों की जगह नई बिरादरियां बनने की संभावना से एक अकेले इंसान को ताकत मिलती है। यह रंगमंच के ट्रस्ट गेम की तरह है। गिरते अभिनेता को पता होता है कि उसे गिरने नहीं दिया जाएगा। अगर वह गिरा तो यह उसकी नहीं समूह की असफलता है। -