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सांप्रदायिक या असंवैधानिक नहीं है गौवध पर प्रतिबंध:

23 अप्रैल 2015

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********************************************************* हाल ही में हरियाणा की भाजपा सरकार ने राज्‍य में गो-हत्‍या पर रोक लगाने के लिए एक सख्‍त कानून पास किया है. गोवध पर हरियाणा का कानून दूसरे राज्यों से काफी कड़ा है. इसमें अधिकतम दस वर्ष की कैद होगी और तीस हजार रुपये से एक लाख रुपये तक जुर्माने का प्रावधान किया गया है. जुर्माना न भरने पर एक वर्ष का और कारावास भुगतना होगा. इससे पहले हाल ही में महराष्ट्र सरकार ने भी इसी प्रकार का क़ानून पारित किया है. कुछ लोग राज्य सरकारों के इन क़ानूनों को सांप्रदायिक नजरिये से देखने का प्रयास कर रहे हैं, लेकिन ये क़ानून न तो सांप्रदायिक हैं और न ही असंवैधानिक हैं. दरअसल भारत में गायों एवं गोवंश (अर्थात दुधारू, वाहक एवं कृषि योग्य पशुधन) का आर्थिक महत्व रहा है, इसलिए इसे आसानी से नष्ट नहीं किया जा सकता. भारत सदियों से एक कृषि प्रधान देश रहा है और इस कृषि आधारित अर्थव्यवस्था में गाय-बैलों एवं अन्य दुधारू पशुओं के महत्व को कोई भी नकार नहीं सकता. कृषि एवं पशुपालन अभी भी भारतीय ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ बना हुआ है. साथ ही, भारत के सबसे बड़े धार्मिक संप्रदाय, अर्थात हिन्दू धर्म में गाय की पारम्परिक स्थिति एक पवित्र पशु की होने के कारण भारत में गाय एवं गौवंश का वध एतिहासिक रूप से एक वर्जित विषय रहा है. भारतीय संस्कृति में डेयरी उत्पादों का हमेशा से बड़े पैमाने पर उपयोग किया जाता रहा है और डेयरी उत्पाद भारतीय भोजन में हमेशा सबसे जरूरी पोषक तत्वों के महत्वपूर्ण घटकों में से एक रहे हैं और अभी भी बने हुए हैं. गाय और गोवंश का महत्व इसलिए भी है कि इन पशुओं के गोबर से सूखे सरकंडे (dry cowdung) एवं जैविक खाद प्राप्त होती है जिनका सालाना के हिसाब से आंकलन किया जाए तो यह लगभग 5,000 करोड़ रुपये से अधिक प्रतिवर्ष का ईंधन एवं खाद होती है और इस ईंधन की उपलब्धता लगभग 50 मिलियन टन जंगली लकड़ी को जलाने के लिए काटे जाने से सुरक्षा प्रदान करती है. यह पशुधन का सकारात्मक पर्यावरणीय पहलू है. इसके अतिरिक्त, खेतों की जुताई एवं फसलों की गहाई जैसे कृषि कार्यों आदि से पशुधन, मुख्यत: बैलों के निवेश को हटा लिया जाए तो इसके परिणामस्वरूप हमें देश में इन कृषि कार्यों के लिए लगभग 180,000 करोड़ रुपयों का निवेश ट्रेक्टर एवं अन्य कृषि उपकरणों में करना पड़ेगा और इन उपकरणों के लिए प्रतिवर्ष लगभग 2.5 करोड़ टन डीजल के लिए भी लगभग 57,000 करोड़ रुपये के निवेश की आवश्यकता होगी. इस खर्चे के अतिरिक्त डीजल एवं मशीनों के उपयोग से होने वाले पर्यावरणीय नुकसान से कोई अपरिचित नहीं है, इसे बताने की आवश्यकता नहीं. यह निवेश भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए फिलहाल, जबकि देश में किसान अपनी दुर्दशा से आत्महत्या करने को मजबूर है, बहुत ही दुखदायी साबित हो सकता है. इस संबंध में संवैधानिक प्रावधान क्या हैं? ******************************************* भारत के संविधान के नीति निदेशक तत्वों में अनुच्छेद 48 में राज्य को कृषि और पशुपालन को संगठित करने का निर्देश दिया गया है. अनुच्छेद 48 के अनुसार "राज्य कृषि और पशुपालन को आधुनिक और वैज्ञानिक प्रणालियों से संगठित करने का प्रयास करेगा और विशिष्टतया गायों और बछड़ों तथा अन्य दुधारू और वाहक पशुओं की नस्लों के परिरक्षण और सुधार के लिए और उनके वध का प्रतिषेध करने के लिए कदम उठाएगा." इस नीति निदेशक तत्व के अनुसरण में क़ानून बनाने की शक्ति संविधान द्वारा संघ और राज्यों को प्रदान की गयी है. संविधान की सातवीं अनुसूची की समवर्ती सूची (Concurrent List) में 17वीं प्रविष्टि से पता चलता है कि "पशुओं के प्रति क्रूरता का निवारण" (Prevention of cruelty to animals) करने के लिए भारत सरकार और राज्य सरकारें क़ानून बना सकती हैं. इसी प्रकार राज्य सूची (State List) की 15वीं एवं 16वीं प्रविष्टि से स्पष्ट है कि "पशुधन का परिरक्षण (Preservation), संरक्षण (Protection) और सुधार (Improvement) तथा जीवजंतुओं के रोगों का निवारण, पशुचिकित्सा प्रशिक्षण और व्यवसाय" तथा "कांजी हाउस और पशु अतिचार का निवारण" (Pounds and the prevention of cattle trespass) के संबंध में कानून बनाने की राज्य विधायिकाओं को अनन्य शक्ति है. इसके अतिरिक्त 12वीं अनुसूची के 18वें विषय के रूप में नगरपालिकाओं को भी "वधशालाओं और चर्मशोधन शालाओं का विनियमन" (Regulation of slaughter houses and tanneries) करने की शक्ति दी गयी है. कुछ मामलों में उच्चतम न्यायालय के निर्णय - ************************************************ भारत के उच्चतम न्यायालय ने कई मामलों में यह अभिनिर्धारित किया है कि व्यावहारिक कारणों से पशुधन के वध पर पूर्णत: प्रतिबन्ध लगाना तो संभव नहीं है, लेकिन उसने 26 अक्टूबर 2005 को दिए गए अपने एक एतिहासिक निर्णय में भारत की विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा अधिनियमित गोहत्या विरोधी कानूनों की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा है. वर्तमान में भारत के 29 में से 24 राज्यों में गायों के वध या बिक्री आदि पर रोक लगाने के लिए विभिन्न क़ानून हैं. गोवंश के वध को नियमित करने वाले ये क़ानून अलग-अलग राज्यों में काफ़ी अलग-अलग हैं. तथापि, कुछ राज्यों में कुछ विशेष प्रतिबंधों के साथ गोवंश का वध करने की अनुमति है, जैसे इन राज्यों में पशुधन की आयु, उसके लिंग, उसकी आर्थिक व्यवहार्यता आदि के आधार पर उस पशुधन के सम्बन्ध में "वध के लिए उपयुक्त" होने का प्रमाणपत्र जारी किया जा सकता है और ऐसे पशुओं का वध किया जा सकता है, जबकि कुछ अन्य राज्यों में गायों और गौवंश के वध पर पूर्ण प्रतिबन्ध लगाया गया है और कुछ राज्यों में कोई प्रतिबन्ध नहीं है. सरकारों के इस प्रतिबन्ध के बावजूद भी भारत के कई शहरों में अवैध वधशालायें चल रही हैं. 2004 के आंकड़ों के अनुसार भारत में 3600 वैध एवं 30,000 अवैध वधशालायें थीं (जिनकी वर्तमान संख्या ज्यादा हो सकती है). भारत में इन अवैध वधशालाओं को बंद करने के अब तक के प्रयास लगभग असफल रहे हैं. आकड़ों के अनुसार 2012 में भारत ने लगभग 3,643,000 मीट्रिक टन पशुधन के मांस का उत्पादन किया जिसमे से 1,963,000 मीट्रिक टन मांस का घरेलू उपभोग किया गया जबकि 1.680 लाख मीट्रिक टन का निर्यात किया गया था. उल्लेखनीय है कि गोमांस के उत्पादन में भारत का विश्व में 5वाँ स्थान है, गोमांस की घरेलू खपत में 7वाँ स्थान और गोमांस के निर्यात में भारत का विश्व में पहला स्थान है, हालांकि निर्यात किया गया अधिकांश मांस भैंस का होता है. परन्तु यहाँ यह ध्यान रखने योग्य है कि गोवंश एवं दुधारू पशुओं के वध का निषेध संविधान के अनुच्छेद 48 में निहित राज्य के नीति-निदेशक सिद्धांत के अनुसरण में एक नीति ही है जो एक स्वागतयोग्य कदम है. इसलिए इसे सरकारों के सांप्रदायिक हो जाने से नहीं जोड़ा जा सकता. कई राज्य सरकारों और संघ शासित प्रदेशों ने किसी न किसी रूप में पशुधन संरक्षण सम्बन्धी कानून बनाए हैं. हालाँकि अरुणाचल प्रदेश, केरल, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड, त्रिपुरा और लक्षद्वीप में इस सम्बन्ध में कोई कानून नहीं है. अन्य सभी राज्यों एवं संघ शासित क्षेत्रों में गाय और गोवंश की हत्या को रोकने के लिए कानून बनाये गए हैं. केरल मांस का एक प्रमुख उपभोक्ता राज्य है और वहां गाय एवं गोवंश के वध पर कोई विनियमन नहीं है. इसलिए पशुओं की नियमित रूप से वध के प्रयोजन के लिए, तमिलनाडु, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश के पड़ोसी राज्यों से केरल में तस्करी की जाती है. ****************

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धर्मेन्द्र जी, निसंदेह ये चर्चा के अहम मुद्दे हैं...मंथन होता है तभी जनहित में कोई बात निकल कर आती है . धन्यवाद !

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