shabd-logo

गाँव

30 जून 2022

19 बार देखा गया 19
घूर तक की जहाँ होती है बन्दगी
न बने यंत्र, जिन्दा रहे जिन्दगी
हर तरफ प्यार का, बसता संसार है
प्राणि का प्राणि पर, पूरा ऐतबार है
न तो घटता गगन, न ही घटती जमीं
गाँव है वो जहाँ, रहते हैं आदमी

गाँव से शुचि धरा, न धरा ने धरा
रहता है मन मुदित, रहता है उर हरा
खेत,खलिहान, पर्वत, नदी, वन खिले
सारसों के युगल ताल प्रमुदित मिलें
बादलों से झरे, जहाँ शशि की अमी
गाँव है वो जहाँ, रहते हैं आदमी

फूलते सर, सरित, फूलती वाटिका
जहाँ अम्बर सुखाए, नदी शाटिका
तीज, त्योहार हो या हो जीवन-मरण
मिलके सब एक संग करते हैं आचरण
फूँक में हैं उड़ाते, जहाँ हर कमी
गाँव है वो जहाँ, रहते हैं आदमी

करते आरम्भ हैं, सब टहल राम से
गढ़ते हैं अपनी किस्मत, स्वयं काम से
देखकर गेहूँ, जौ, धान की बालियाँ
पीटते मिल सभी, हर्ष से तालियाँ
देख यह स्वर्ग से डोल जाते यमी
गाँव है वो जहाँ, रहते हैं आदमी

नंदन पंडित की अन्य किताबें

किताब पढ़िए