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मनमीत

29 अक्टूबर 2021

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कहाँ हो तुम मेरे मन मीत?


मेरी सूनी अँगनाई में 
आ जाओ,ले बसंत-बहार।
मेरे हृदय- मंदिर में, अर्पण 
कर दो आलिंगन -हार।

आगत सुधियों के कोठों में 
बजा दो मधु प्रणय के गीत!


मेरे सपनों की बगिया में 
खिला दो सुन्दर,प्यारे फूल।
मेरी आशाओं की नौका
थाम,पहुँचा दो सरिता कूल।

छू के अधरों को अधरों से 
छुअन बना दो तुम गोतीत।


मेरी पलकों की कुटिया में 
सजा दो अपना प्यारा चित्र।
मेरी साँसों के दरवाजे 
के बन जाओ प्रहरी मित्र।

मेरी मस्तक रेखाओं को
बाँच-बाँच कर दो प्रतीत।


मेरी जिह्वा के उर्वर में 
लिख दो केवल अपना नाम।
मेरे कानों में घुल जाये
तेरी बोली आठों याम।

मेरी हारों में भी लिख लो
चाहो तो मनचाही जीत!

✍ रोहिणी नन्दन मिश्र, इटियाथोक 
        गोण्डा, उत्तर प्रदेश 

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