💢बाकी एक बेरी गंगा💢
मेरे यहाँ बलिया में गंगा जी के स्नान का बड़ा महत्व है ।अक्सर हम सब जब भी कार्तिक पूर्णिमा मकर संक्रांति या मकर स्नान के दिन गाँव पर रहते तो गंगा जी के तट पर जाकर उनमें स्नान जरूर करते है,बाकी किसी
परिचित के घर मुंडन संस्कर हो तो भी एक अच्छा अवसर स्नान का मिल जाता है ।
,हालांकि बाकी स्नान और मुंडन संस्कार में भारी अंतर है क्यों कि बाकी स्नान के दिन मेले जैसा माहौल और भीड़ रहती है पर यदि मुंडन संस्कार का कोई शुभ मुहूर्त पंडित जी लोग अपने जजमान जी को ठीक से बता दिए तो यकीन मानिए वह दिन किसी अर्ध कुंभ से कम नही होता। बैंड बाजे और ,,लोकनृत्यों के शोर में पूरा माहौल गर्दा ही गर्दा हो जाता है ,,साथ ही जगह जगह बैठकर स्त्रियां बच्चें और पुरुष पूड़ी सब्जी जलेबी का आनंद लेते दिख जाएंगे ।
पिछले साल माता जी के आदेश पर एक मुंडन संस्कार में मेरा भी जाना हो गया ।यहाँ पर एक बात जरूर साफ कर दूं ,,तो यह मुंडन संस्कार मुख्य रूप महिलाओं के लिए एक मुख्य आयोजन है इसमें पुरुषों की कोई विशेष भूमिका नही होती पर किसी के साथ पारिवारिक रिश्ते हो तो लोग पुरुषों को भी आमंत्रित कर ही देते है ,मेरी भी स्थिति लगभग वही थी ।
पहले के जमाने मे जब हम लोगो का जब मुंडन हुवा बैलगाड़ी ही इस आयोजन का मुख्य साधन था ,लेकिन समय बदला और ट्रैक्टर बस जीप से होते हुए अब स्कॉर्पियो बोलेरों पर बैठकर ही आजकल लोग आ और जा रहे ,आखिर कुछ भी हो स्टेटस मेंटेन जो करना है ।
साधन में बैठकर हम भी गंगा जी तट पर पहुँच गए ,जिस बच्चें का मुंडन संस्कार था उसकी माँ बहुत खुश थी ,पिता की आँखों मे अलग रौनक थी ,घर की स्त्रियां मंगल गीत गाते हुए गंगा जी का शुक्रिया अदा करते ,नाव पर बैठकर इस पार से उस पार जाने को आतुर थी ।
तभी मैंने ठकुराइन (नाउ की पत्नी ) से पूछा ,,,आज त बड़ा खुश बाड़ू !😀
ठकुराइन - बबुआ जी राकेश बाबू के पइसा के कौनो दुःख बा आपिसर हवन आ लइका के ओहार ह सोना के छुरी आ चांदी के कटोरी आज बिना ले ले मानब ना ,,बाकी साड़ी आ पइसा के पूछता ? हम त जवन पहन के फेंक देब उ ढेर जाना के नसीब ना होई,,,,, हुऊऊ।🙄
ठकुराइन की भारी भरकम डिमांड देखकर ज्यो ही आगे बढ़ा मेरे पुस्तैनी माली ने एक माला मेरे गले मे डालते हुए बोला ,मनोज चाचा खाली खाली ना चली ,,।
मैंने बीस रुपये का नोट पकड़ाया तो झुलल्लाते😡 हुए ना ना ना कम से कम एगो नम्बरी ,नम्बरी मतलब सौ रुपया।
बगल में खड़ी मेरे गाँव की भौजाई लोग पीछे से हूटिंग करते हुए मॉली को उकसा रही थी ,और माली जिद पर था ,,अंततः सौ रुपये की नोट देकर मैंने जैसे तैसे पिंड छुड़ाया ।😀😀
मंगलमय माहौल में सारा कार्यक्रम विधिवत सम्पन्न हुवा , सभी लोगो को अच्छा नेग मिला सारे रिश्तेदार प्रसन्न दिखे खासतौर से महिलाएं साड़ी और पुरुषों को पैंट शर्ट मिला कुछ द्रब्य और गहने भी मिले और हम लोग पूड़ी सब्जी जलेबी दही खाने के बाद अपने अपने साधन पर बैठ गए ।
तभी राकेश का चेहरा थोड़ा उदास दिखा , मुझे ढूंढ़ते. मेरी गाड़ी के पास आया ।
मनोज कहा हो ?
मैंने बोला हा राकेश बताइये ?
जानते हो बड़ी वाली साली जी का कान का झुमका कही गिर गया है ।
वो घाट पर ही ढूंढ़ रही है साले साहब भी परेशान है।
सब मना कर रहे थे कि रोल गोल्ड पहन लो पर वो मानी नही ,अब भुगतो पर क्या करोगे रिश्तेदार है नही मिला तो देना ही पड़ेगा।
इधर धीरे धीरे कुछ स्त्रियां फुसुर फुसुर करने लगी कुछ ने देहाती ज्ञान देना शुरू किया कि
आजकल के जमाना में झमकावत चलत बा लो !
अब रोवला से मिली !
मैंने राकेश से पूछा साली जी नाव पर चढ़ी थी क्या ?
उसने बोला शायद हा !
चलो उस नाव पर चलते है
हम सब तेजी से उस नाव के पास पर गए और उसकी तलहटी में इधर उधर देखने लगे ।
उस नाव का मल्हाह हम लोगो से पूछा क्या ढूंढ रहे है ?
राकेश ने कुछ बताना उचित नही समझा !
मैंने बोला बता दो यार !
वह झल्लाकर मुझ पर बोला अगर ले लिया होगा तो दे देगा क्या ?
कभी हम सब गंगा के तट को देखते कभी गंगा मइया से प्रार्थना करते कि मिल जाये
चूँकि मुख्य सवाल गहने का नही बल्कि हमारे समाज मे सोना का खोना अच्छा नही माना जाता ।
काफी थक हार कर जब हम सब जाने लगे तो ,,,,,,,,एक आदमी पीछे से चिल्लाया ,,रुको भाई क्या खोज रहे हो ?
मैंने बोला कान का झुमका !
उसने बोला कान का,,,, झुमका ?
दोनो खो गया है या एक
राकेश बोला ,,एक ।
उसने बोला दूसरा कहा है
मैंने बोला जिसका झुमका है उसके पास।
फिर वह थोड़ा चुप होकर खड़ा रहा ।
फिर बोला अगर दूसरा वाला जोड़ा दिखा दो मैं खोज सकता हूं ।
इतना सुनते ही हमारे चेहरे पर प्रसन्नता आ गयी ,राकेश दौड़कर साले साहब के पास गया और साली साहिबा को नाव के पास लाया।
वह आदमी नाव का नाविक था जिसने अपनी जेब से वह झुमका निकाला और राकेश के हाथों में दे दिया ।
हम सब उसे प्रणाम कर कुछ इनाम देने की पेशकश किये जिसे उसने विनम्रतापूर्वक अस्वीकार यह कहते हुए किया कि भइया लोग हम गंगिया माई से डरते है ,
हमारी जाति लोगो को पार लगाती है फिर किसी को बीच मझधार हम कैसे छोड़ सकते है। आप सब यू ही गंगिया माई आते रहिये ।
इधर झुमका मिलने पर साली जी के चेहरे पर भारी मुस्कान💞❣️ थी और पीछे बैंड बाजे पर वही धुन चल रहा था --
नइहर मे ए गोरी कुछ ,,,,,,,,,,,,
बाकी एक बेरी गंगा नहइले बानी ,,,, ।।
💢मनोज कुमार दुबे ✍️💢
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नोट -इसके सभी पात्र काल्पनिक है