कबीर से तुलसी तक जिनके आराध्य राम है।
कबीर का जन्म और पालन पोषण किन परिस्थितियों में हुवा और काशी के घाट पर वे कैसे राममार्गी रामानंद के शिष्य बने साथ ही संत तुलसी दास जी का जन्म और पालन पोषण और गुरु नरहरि दास का शिष्य बनना भी करीब करीब एक जैसा रहा अर्थात बचपन मे जिन कठिन परिस्थितियों से इन दोनों महापुरुषों को जूझना पड़ा और फिर अपने सम्पूर्ण जीवन को लोककल्याण के लिए समर्पित करने का दृढ़ निश्चय यह बिना राम की कृपा के संभव नही था।कबीर के राम और तुलसी के राम पर अलग अलग लेखकों ने अपने अपने ढंग से विभिन्न साहित्यिक पत्र पत्रिकाओं में लिखने का प्रयास किया है ,पर मर्यादा पुरुषोत्तम के विषय मे जो समानता तुलसी और कबीर में रही यही कारण है कि राम को हम अखिल ब्रह्मांड नायक के रूप में पूजते और भजते है कबीर साहब लिखते है -
कस्तूरी कुण्डल बसै , मृग ढूंढ़े वन माहि।
ऐसे घट - घट राम हैं, दुनिया खोजत नाहिं ।
राम शब्द भक्त और भगवान में एकता का बोध कराता है। जीव को प्रत्येक वक्त आभाष होता है कि राम मेरे बाहर एवं भीतर साथ - साथ हैं, केवल उनको पहचाननें की आवश्यकता है। मन इसको सोच कर कितना प्रफुल्लित हो जाता है। इस नाम से सर्वात्मा का अनुभव होता है। स्वामी तथा सेवक, साहेब और भक्त में उतनी सामीप्यता नहीं अनुभव होता है। परमात्मा को और भी नामों से संबोधित किया जाता है, लेकिन वे एकांगी जैसा अनुभव होते हैं।
"र " का अर्थ है अग्नि, प्रकाश, तेज, प्रेम, गीत । रम (भ्वा आ रमते) राम (रम कर्त्री घन ण) सुहावना, आनन्दप्रद, हर्षदायक, प्रिय, सुन्दर, मनोहर ।कबीर साहेब राम के सम्बन्ध में भेद कहते है:-
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चार राम हैं जगत में,तीन राम व्यवहार ।
चौथ राम सो सार है, ताका करो विचार ॥
एक राम दसरथ घर डोलै, एक राम घट-घट में बोलै ।
एक राम का सकल पसारा, एक राम हैं सबसे न्यारा ॥
वही राम के लोक रंजक मर्यादा पुरुषोत्तम रूप का प्रस्तुत करने में तुलसी का कोई सानी नहीं। राम भक्ति से सरोबार तुलसी के लिये-
भगत हेतु भगवान प्रभु राम धरेउ तनु भूप
किए चरित्र पावन परम, प्रकृत नर अनुरूप
अर्थात् राम अपनी भक्ति-प्रदर्शन के लिये भक्तों की रक्षा के लिए न जाने किस किस रूप में अवतरित होते हैं अर्थात कबीर के घट घट के राम वही है जो तुलसी के राम है अर्थात राम एक है जो संसार को सुख प्रदान करने वाला है, कलियुग के समस्त दोषों से मुक्ति प्रदान करने वाला है। स्नेह आत्मीयता, भक्त वत्सलता, सद्भाव और प्रेम की ‘‘अद्भुत मिसाल हैं - राम’, प्रेम उनसे जुड़ने और जोड़ने का साधन है। राममय बनने और उनके महात्म्य को समझने के लिये-
रामहिं केवल राम पिआरा
जानि लेउ जो जान निहारा।
जो राम कथा सुनता है, पढ़ता है, सुनाता है वह स्वयं राममय हो जाता है।
जहां सुमति तहं सम्मति नाना’’
‘‘जहं कुमति तहं विपति निधाना।’’
इसीलिये राम ‘‘मंगल भवन अमंगलहारी’’ कहे गए हैं। उनका गान पाप का नाशक और शौर्य शक्ति की स्थापना का काव्य है जो संघर्ष की प्रबल प्रेरणा से अनुप्राणित है। विषय परिस्थितियों में कुंठाओं, तनाव पूर्ण माहौल में सार्थक जीवन कैसे जिया जाए - रामचरितमानस इसका प्रेरक साहित्य हैं। प्रकृति और जीवन की समरसता को स्थापित करने का आधार हैं राम! लोक चेतना उन्मुख करने में इसका कोई सानी नहीं। रामकथा को सम्पूर्ण समाज के लिये ग्राह्य बना कर तुलसी अमर हो गए। स्वान्त्सुखाय से समष्टि तक विस्तार देते हुए तुलसी ने इसे ‘बहता नीर’ बनाया है। युगीन संदर्भों से जुड़ते हुए रामकथा सदियों तक अमर रह सकती है यदि सही प्रकार से भावी पीढ़ियों तक हम इसका महत्व प्रतिपादित कर सकें । श्री रामचरितमानस के सुंदर कांड में गोस्वामी जी लिखते है
उमा संत कइ इहइ बड़ाई।
मंद करत जो करइ भलाई॥
तुम्ह पितु सरिस भलेहिं मोहि मारा।
रामु भजें हित नाथ तुम्हारा॥
वही साखी में कबीर के वचन है कि
सुमिरन करहु राम की, काल गहे हैं केश ।
न जाने कब मारिहैं, क्या घर क्या परदेश ॥
अर्थात मनुष्य रूप में यदि हमने जन्म लिया है तो श्री राम को आत्मसात करना होगा ,आप केवल राम कहिये या जय श्री राम कहिये कबीर और तुलसी ने जिस राम को अपने जीवन का प्रेरणास्तोत्र माना है वह राम सबका कल्याण करें ।
कबीर साहेब और गोस्वामी तुलसीदास जी को अध्ययन के उपरांत एक पत्रिका के संपादकीय के लिए लिखा -
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मनोज कुमार दुबे