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बंदरिया

20 अगस्त 2022

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बंदरिया

🙊

(भाग -१)

पारिजात के वृक्ष में इस बार अच्छे फूल आये है ,वैसे तो मेरे बागीचे में बहुत से प्रकार के पुष्प है लेकिन इस पारिजात के फूल की बात ही निराली है ,मेरी माँ प्रतिदिन यही पेड़ के नीचे से पुष्प उठाकर अपने आराध्या को समर्पित करती है ,आज पुनः इस पुष्प वृक्ष को देखकर उस जीव की याद आ गयी जो इस पुष्प की डालियों पर उछलता कूदता कभी कभी उसकी डालियों को तोड़कर दूर भागता फिर तेजी से आकर उसके अगल बगल चौकड़ी भरकर अपने साथियों के साथ खूब उधम कूद मचाता,तब हम सबको  उस पौधे पर एक अदद कली की खोज रहती थी और आज उस छोटे से प्राण की , परन्तु न जाने वह अब किस रूप में होगी, या पौधे के नीचे बिखरे इतने अच्छे फूल ही उसकी उपस्थिति का सूचक बन आये हो।

मेरे घर के सामने एक बड़ा सा बागीचा है ,जिसे मेरी दादी फुलवारी कहती  थी वैसे तो इस फुलवारी में हम सबने एक दो पौधे लगाए है पर इसे सबसे ज्यादे समृद्धशाली मेरी दादी और मेरे बड़े पिता जी के लड़के सुनिल ने किया है ,शायद यह फुलवारी ही है कि मुझे प्रकृति को समझने में देर नही लगी और अच्छे भाव के साथ बैठकर यहाँ लेखन कार्य किया जा सकता है ,रंग बिरंगी तितलियों पंक्षीयो ,से होते हुए इसमें खतरनाक जीव साँप और गोह भी कभी कभी दिख जाते है पर न तो किसी इंसान से उन्हें कोई मतलब है न ही कभी हम लोग इन्हें परेशान करते है इस प्रकार यहाँ मजबूत गंगा जमुनी तहज़ीब का अच्छा उदाहरण देखा जा सकता ।

यह स्थान नीलगाय और कभी कभी महादेव प्रिय नंदी जी का भी शरणस्थली है क्यो कि ये बड़े जानवर रात्रि में बड़े पेड़ के पास सुरक्षित बैठते है , साथ ही लगभग कई रंग के कुत्ते जो मेरे घर के बचे हुए भोजन पर कई पीढ़ियों से अधिकार जमाकर उसके स्वाद का लुफ्त उठा रहे है और किसी बाहरी ब्यक्ति जानवर के आने पर भौ भौ कर हम सबको आगाह करते है।इन सबसे महत्वपूर्ण प्रातः काल मे ठाकुर जी बोलकर प्रातः का एहसास कराने  वाली वह काली चिड़िया,फिर  तोते और कोयल की आवाज के साथ मैं प्रतिदिन जब भी गांव रहता हूं इन्हें सुनने और देखने के लिए बैठता हूं ।

घर के आगे फर्श पर चावल के टुकड़ों को दोनो हाथ से पकड़कर कुतरने की मुद्रा में गिलहरियों के जोड़े जो कुकर की सीटी के साथ ही उस टुकड़े को गटक जाते है  हालांकि की कभी कभी कौवे आकर तंग करते है पर उनकी सारी होशियारी किसी काम की नही होती।

इस फुलवारी परिवार में बंदरो का एक बड़ा झुंड है जो प्रत्येक पंद्रह दिन पर आते है और फिर इतने ही दिन रहकर वापस दूसरे गांव के बागीचे चले जाते है ,इनमें  जो छोटे बंदर और बंदरिया होते है वे पेड़ पौधों को ज्यादे नुकसान करते है ,पर इनका उछलना कूदना खेलना एक दूसरे को दौड़ाना कौतूहल से भर देता है।

मनोज कुमार दुबे

बलिया उत्तर प्रदेश

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