आज मैं यही विचार कर रहा था जब मैं छोटा सा बच्चा था और विद्यालय जाता था तो सुबह - सुबह स्कूल पहुचने के बाद घंटी लगाती थी हम सब बच्चे भाग कर विद्यालय के प्रांगड़ में एकत्र हो जाते थे फिर हमारे अध्यापक हमें एक कतार में खड़ा करते फिर हमें यही हर दिन वो यही सिखाते "वह सक्ति हमें दो दया निधे कर्त्तव्य मार्ग पर डट जाएँ", और फिर इस प्रार्थना के अंत में कहते थे कि "जिस देश जाति में जन्म लिया बलिदान उसी पर हो जाएँ " मेरे भाइयों आज भी मेरे दिल और जेहन में ये बात गूंजती रहती है और मैं प्रभु से यही प्रार्थन करता हूँ कि ये भावना जो मेरे दिल में मेरे बचपन से जगाई है उसे बरकरार रखना