shabd-logo

xyz

12 मई 2015

276 बार देखा गया 276
मुझे यहाँ आना चाहिए था की नहीं ??? मुझे लगता है की नहीं क्युकी .................................... १ - मुझे बुलाया नहीं गया आप लोग बोलेंगे की कैसे नहीं बुलाया गया कितनी बार मैंने कहा कितनी बार मैंने कहा ..................... फिर भी मैं कहूँगा की मुझे नहीं बुलाया गया . आप लोग पूछोगे कैसे , मैं कहता हूँ की मुझे सब लोगो ने कहा आजाओ - आजाओ पर कभी मेरे ससुर ने आज तक कभी भी नहीं बुलाया की आजाओ, और मेरे समझ से जबतक घर का मुखिया न बुलाये तब तक वहां जाना मुनासिब नहीं होता है, इतना ही नहीं मैंने इनलोगो की कइयों बार कहा भी की मुझे आप लोग बुलाते ही नहीं तो मैं आऊँ कैसे, और अगर इतना कहने के बाद भी कोई नहीं समझता है तो मैं क्या करूँ और मुझे यही लगता था की ये लोग मुझे बुलाना ही नहीं चाहते , और मेरे गवाने के बाद आज तक कभी मेरे ससुर ने मुझे बुलाया नहीं और मैं आया नहीं .और यही कारण है जिसके नाते मैं कहता हूँ की मुझे नहीं बुलाया गया . २ - मेरी बदनामी की गयी की सोने की चेन नहीं दी गयी इसके कारण नहीं आते मैं इन लोगो से पूछना चाहता हूँ की मेरी ये बदनामी करने से पहले इनलोगो ने मेरे बारे में जरा सा भी सोचा की ये किसके बारे में क्या कह रहे है, और मेरे बारे में लोगो से यह कहना चालू कर दिया की सोने की चेन नहीं दिया इसके नाते नहीं आरहे, और जम कर कोशना और मुझे और मेरे परिवार को बदनाम करने की कोशिस की , पर सायद ये लोग भूल गए जब मैं शादी करने गया था तो सुबह खिचड़ी खाने के समय मैं बिना नाटक किये चुप चाप खिचड़ी खाकर बाहर गया, मुझे अगर नाटक करना था तो मैं उस समय बिना कुछ नाटक किये , बिना कुछ बोले आप लोगो की हालत को समझते हुए खिचड़ी खाकर बाहर नहीं आ गया होता , अगर मेरे दिल में कुछ ऐसा था तो उस समय भी सोने की चेन की मांग कर सकता था , पर मैं एक सब्द भी उस बारे में कहा हो तो आप लोग बोलो , अगर उस समय मैं नहीं बोला , उस समय गुस्सा नहीं हुआ तो बाद में सोने की चेन की लिए मैं क्यों गुस्सा होने लगा , हम आप की इज्जत का ख्याल रखें और आप हमें बदनाम करो और सोचो इसके बाद भी हम आएं ,इन्ही कारणों से मेरा दिल गवाही नहीं देता यहाँ आने के लिए , दिल वहां जाने को करता है जहाँ सम्मान मिले ,और जहाँ बिना सोचे समझे बिना जाने ही बदनाम किया जा रहा हो वहां कोई कैसे आए. ? ३- मेरे प्रति मेरी सासु माँ के भाव हालां की सबसे ये कहने की बात नहीं है पर मुझे अपना पछ रखने के लिए सबसे ये कहना ही पड़ रहा है क्यों की आज तक आप लोगों ने वाही सुना है जो इन लोगों ने आप को बताया को बताया है , मुझे भी अपना पछ बताना है इस लिए ये सब बता रहा हूँ जो १०० % सत्य है , जैसा की आप को ज्ञात है मैं मुंबई में रहता हूँ , एक बार की बात है मैं घर पे आया हुआ था और पापा मजाक ही मजाक में बोले की लाओ मैं तेरे सास को बोलता हूँ की मेरा लड़का आया हुआ है , तो आप थोड़ा तिल और मूंगफली भेज दो मेरे लडके के लिए जो आप भेजने वाली थी, तो मेरी प्यारी सासु माँ का जबाब था की अभी मेरे घर पर किसी के पास टाइम नहीं है और आप ही किसी को भेज दो आकर ले जाय, और मैं जब ये बात सुना तो मुझे बिजली के करंट सा लगा , मैं यह सोचने को मजबूर हो गया की इन लोगो के दिल मेरे प्रति कितनी छह और कितनी श्रद्धा है , इससे अच्छा उदहारण तो मुझे मिल ही नहीं सकता है जो मुझे उसदिन मिला , उस दिन मुझे यहाँ कभी नहीं आया इस बात पर अफसोस नहीं बल्कि खुसी हो रही थी की मैंने जाने या अनजाने में बहुत ही अच्छा काम किया की वहां कभी नहीं गया , मैंने लोगों से सुना है की सास माँ के सामान होती है और इनकी मेरे प्रति ऐसी भावना, मुझे अगर ये इस तरह मना भी करती तो चलता पर इन्हों ने ये बात मेरे पिता जी से कही, मेरे कारण मेरे पिता जी को ये बात सुननी पड़ी जिनको इनके इस जबाब की उम्मीद नहीं थी , नहीं तो सायद वो कभी भी इनसे ये बात नहीं कहते , मैं यही सोचता हूँ की उस समय ये यह भी कर सकती थी की नहीं अभी कोई नहीं है लेजाने के लिए मैं कैसे भी कर के भिजवाती हूँ , या ऐसा कुछ भी बाद में चाहे भेजती या न भेजती वो बाद की बात है, इन सब बातों से मेरे दिमाग में यही आता है की जिसके दिल में मेरे और मेरे परिवार मेरे पिता के प्रति ऐसी विचारधारा है उसके पास कोई कैसे जाय दिल गवाही नहीं देता की इतना खुद अपने कोनो से सुनाने के बाद मैं उनके घर वो भी उनके बुलाने पर जाऊ जो मेरे लिए थोड़ी सी मूंगफली और थोड़ा सा तिल नहीं भेजा वो भी मेरे पापा के कहने के बाद भी वो अपने घर क्या बुलाएगा और खातिर दारी क्या करेगा ?? ४ - इन लोगो का बार - बार ये कहना की इन्ही ले ना बा अबहीं हमरे दू - दू गो अइहें ..... आप लोगो को उपरोक्त सारे कारन बता चूका हूँ की मैं यहाँ क्यों नहीं आता हूँ जो बात सायब इन लोगो को भी पता है उसके बाद भी ये लोग मेरी मम्मी को फ़ोन पर बोलते थे की मुझे यहाँ भेजें और मम्मी भी मुझे बार - बार बोलती थी की जाओ कम से कम एक बार होके आओ तुम्हारी सास बोल रही थी ऐसा वैसा , पर मैं इस बारे में माँ से बात करने के लिए मना कर देता था की उपरोक्त कारणों से मेरा दिल कभी भी नहीं किया की मैं यहाँ आऊ, पर कुछ समय बाद इनलोगों ने मम्मी से कहना चालू कर दिया की उन्हीं ले नाहीं बा, हमरे दू - दू गो दामाद और अइहे , ................. इन्ही सब बातों से सही पूछिये तो मेरा दिल कभी आने के लिए राजी नहीं हुआ , अब आप खुद ही निर्णय करे मैं सही था या गलत , फैसला आप लोगो के हाथ है , सच्चाई यही है , आप चाहे तो इन्ही लोगो से पूछ ले............................ धन्यवाद उपेन्द्र कुमार शर्मा

उपेन्द्र कुमार शर्मा की अन्य किताबें

1

बचपन की यादें

18 अप्रैल 2015
0
0
0

आज मैं यही विचार कर रहा था जब मैं छोटा सा बच्चा था और विद्यालय जाता था तो सुबह - सुबह स्कूल पहुचने के बाद घंटी लगाती थी हम सब बच्चे भाग कर विद्यालय के प्रांगड़ में एकत्र हो जाते थे फिर हमारे अध्यापक हमें एक कतार में खड़ा करते फिर हमें यही हर दिन वो यही सिखाते "वह सक्ति हमें दो दया निधे कर्त्तव्य मार्ग

2

xyz

12 मई 2015
0
0
0

मुझे यहाँ आना चाहिए था की नहीं ??? मुझे लगता है की नहीं क्युकी .................................... १ - मुझे बुलाया नहीं गया आप लोग बोलेंगे की कैसे नहीं बुलाया गया कितनी बार मैंने कहा कितनी बार मैंने कहा ..................... फिर भी मैं कहूँगा की मुझे नहीं बुलाया गया . आप लोग पूछोगे कैसे , म

---

किताब पढ़िए