Bal Krishan Baghuri
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दरिया के उस पार देखता हूं मंजिलों की कतार, दिल भी चाहता एक मंजिल पर है नहीं दौलत बेशुमार।
Bal Krishan Baghuri की डायरी
इस किताब में, मैंने स्वयं रचित कुछ शे'र-ओ-शा'इरी को जगह दी है, ये तो मैं कह नहीं सकता कि बेहतरीन है क्योंकि ये फैसला तो पाठक गण को करना है, मैंने मेरी तरफ से कोई कोर-ओ-क़सर नहीं छोड़ी। अपने अनूठे अनुभव से मुझे प्रेरित करें ताकि और अच्छा लिख सकूं।
Bal Krishan Baghuri की डायरी
इस किताब में, मैंने स्वयं रचित कुछ शे'र-ओ-शा'इरी को जगह दी है, ये तो मैं कह नहीं सकता कि बेहतरीन है क्योंकि ये फैसला तो पाठक गण को करना है, मैंने मेरी तरफ से कोई कोर-ओ-क़सर नहीं छोड़ी। अपने अनूठे अनुभव से मुझे प्रेरित करें ताकि और अच्छा लिख सकूं।