मुश्किल तो था अपने आप को अपनों ही से दूर रखना,
मगर ख़ौफ़-ए-बवा ने सिखाया के फासला जरूर रखना।
कौन चाहता है खुद को खुद ही के घर में क़ैद करना,
बवा से हुआ मयस्सर खुद को खुद का असीर रखना।
अपने तो अपने होते हैं यानी याद आई रिश्ते-नातों की,
के हर कोई चाहता है संभाल कर पुरानी तस्वीर रखना।
सूना-सूना हो गया घर-आंगन,सूनी-सूनी हो गई गलियां,
मुकम्मल कैसे हुआ बेजान ख़ामोशी को तक़रीर रखना।
जवाब तलब करोगे कैसे 'बाग़ड़ी' इस ख़ामोशी का तुम,
यहां सब बेजुबान हैं आता नहीं इनको तफ़सीर रखना।