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खौफ़-ए-बवा

11 जनवरी 2022

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मुश्किल तो था अपने आप को अपनों ही से दूर रखना,
मगर ख़ौफ़-ए-बवा ने सिखाया के फासला जरूर रखना।

कौन चाहता है खुद को खुद ही के घर में क़ैद करना,
बवा से हुआ मयस्सर खुद को खुद का असीर रखना।

अपने तो अपने होते हैं यानी याद आई रिश्ते-नातों की,
के हर कोई चाहता है संभाल कर पुरानी तस्वीर रखना।

सूना-सूना हो गया घर-आंगन,सूनी-सूनी हो गई गलियां,
मुकम्मल कैसे हुआ बेजान ख़ामोशी को तक़रीर रखना।

जवाब तलब करोगे कैसे 'बाग़ड़ी'‌ इस ख़ामोशी का तुम,
यहां सब बेजुबान हैं आता नहीं इनको तफ़सीर रखना।

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रचनाएँ
Bal Krishan Baghuri की डायरी
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इस किताब में, मैंने स्वयं रचित कुछ शे'र-ओ-शा'इरी को जगह दी है, ये तो मैं कह नहीं सकता कि बेहतरीन है क्योंकि ये फैसला तो पाठक गण को करना है, मैंने मेरी तरफ से कोई कोर-ओ-क़सर नहीं छोड़ी। अपने अनूठे अनुभव से मुझे प्रेरित करें ताकि और अच्छा लिख सकूं।
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खौफ़-ए-बवा

11 जनवरी 2022
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बेटियां क्यूं है पराई अमानत?

11 जनवरी 2022
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खौफ़-ए-बवा

20 मार्च 2022
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