कब तक घुटती रहोगी यूंही घुटन भरे इस घूंघट में... तोड़ के मौन तू मुंह तो खोल के बोल दे जो है तेरे मन में.... आजादी की चल रही हवा अब हटा हया का ये पर्दा... तू भी एक इंसान है बता दे सबको तेरी क्या है मर्यादा.... जितना तू दबती जाएगी ये दुनिया तुझे और दबाती जायेगी... आज न बोली तू अगर तो एक दिन यूंही दफन हो जायेगी.. जब भी तू कुछ करना चाहे जग में तू आगे बढ़ना चाहे.. रोकती है टोकती है ये दुनिया भले ही तू कुछ पढ़ना चाहे... दूसरो पर तंज कसे ये दुनिया भी बड़ी अजब निराली है... बस औरों पर ही नजर है रहती खुद की तो बड़ी प्यारी है.... अपनी सोच की नुमाइश अपने ही चोंच से करते फिरते है... ये वो लोग है साहब जो दूसरो की नही खुद की नजरों में गिरते है... मर्द को मर्द होने का गुरुर है हर जगह वो तो बेकसूर है... औरत के साथ कुछ गलत हो जाए अगर तो उसका ही कसूर है... क्या क्या करूं बखान में इस समाज के ठेकेदारों का... इसने चलते ही तो बिखर जाता है घर यहां हजारों का... सुधार सको तो सुधार करो ज्यादा कुछ नहीं बस खुद की सोच पर एक बार अच्छे से विचार करो.. मैं क्या बदल सकती हूं सबकी अपनी अपनी विचारधारा है हां मगर समझाने की कोशिश हूं करती क्यों की ये आजाद भारत देश हमारा है.....