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बेचारा पथिक

16 मई 2020

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बेचारा,पथिक भूखा हो गया है,

रास्ता भी थका सा हो गया है,

पाँव अभागे निकले थे गाँव से शहर को कुछ करने,

आज उसके साथ ये क्या हो गया है.


.

बेचारा, पथिक प्यासा हो गया है,

सोचता है ये क्या हो गया है,

अपने घर जाने को तड़फ रहा है, बेचारा,

उसका जो सहारा था आज खो गया है.


पहले शहर जा के उसे अच्छा लग रहा होगा,

कभी सोचा है 'सचिन' अब उसे कैसा लग रहा होगा,

जब जीने के लिए निवाले की दिक्कतें आ रही हैं,

अब उसे खुद के साथ कुछ धोखा लग रहा होगा.


उसके अंदर घर आने की तमन्ना बरकार है,

वो बेचारा, घर आने को कब से बेकरार है,

जहाँ रुक कर कोई निवाले को ना पा पाए,

उसे लगता कि वहां रुकना अब बेकार है.


कोई सज्जन मिलें तो उसे खाने को कुछ मिला,

उसे पैदल चलना पड़ा, जाने को क्या कुछ मिला,

बेचारे बच्चे रो रहे है भूख के खातिर,

जो मिला है उसे भूख से रोता मिला और क्या कुछ मिला.

❤️ Sachin Kumar Verma ❤️

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