मध्य भारत में एक राजा थे ,उनकी छोटी सी रियासत थी , उनकी प्रजा उनसे बहुत प्रसन्न रहती थी,वह भी प्रजा के सुख दुख का पूरा ध्यान रखते थे ,उनकी रानी भी उन्ही कि तरह अच्छी और नेक दिल थी, बस एक ही दुख राजा रानी और राज्य के सभी लोगो को खाए जा रहा था , वह था राजा का निःसंतान होना , राजा ने बहुत से योग प्रयोग करके देख लिए ,कई राज्यों के बड़े बड़े वैद्य और ऋषि मुनि से भी मिल लिए, सभी देवी देवता और उनके धामों के दर्शन किए , पर हर प्रयास उनका विफल ही होता रहा , वह हताश होकर बैठ गए ,वह समझ गए कि उनके भाग्य में विधाता ने बच्चे लिखे ही नही, पर राज्य के ज्योतिष कहते थे कि उन्हें बच्चे होंगे , राजा 35 वर्ष पार कर चुके थे ,15 वर्ष हो चुके थे उनके विवाह के फिर भी उनके आंगन में बच्चो की किलकारी नही गूंजी थी, "!
एक दिन मंत्री जी बड़े प्रसन्न होकर दरबार में आए और राजा से बताए ," महाराज हमारे राज्य के वन में एक अद्भुत महात्मा पधारे हैं ,वह कुछ दिनों से वहीं अपना साधना स्थल बनाए हुए हैं, अब तक जो भी उनके पास गया कोई खाली हाथ लौटकर नहीं आया, यदि आप चाहें तो एक बार उनके दर्शन कर ले , वैसे भी अपने राज्य में कोई महात्मा आए तो उनके दर्शन तो प्राप्त करना ही चाहिए,"!! राजा कहते हैं ," दर्शन की भावना से चलूंगा परंतु भेष बदलकर चलेंगे, पहले देखेंगे कि वह सच में पूज्यनीय हैं तो हम उनकी विधिवत पूजन करेंगे अन्यथा चुप चाप चले आयेंगे, "!
मंत्री और राजा साधारण भेष में जाकर चुप चाप सबसे पीछे एक कोने में बैठते हैं, कई लोग महात्मा जी के समक्ष बैठे थे , वह सभी के समस्या का समाधान करते हैं , वैसे तो राजा को महात्मा जी का व्यवहार और उनके वचन दोनो ही बहुत भाया पर उस से यह सिद्ध नही होता था कि वह बहुत पहुंचे हुए महात्मा हैं, धीरे धीरे सभी लोग चले जाते हैं तो महात्मा इन दोनो कि ओर देख मुस्कराकर कहते हैं " राजन उतनी दूर क्यों बैठे हैं ,यह तो आपका राज्य है ,धन्यवाद यहां पधारने के लिए, "!! राजा तो आत्मविभोर हो जाते हैं और सीधे महत्मा के चरणों में समर्पित हो जाते हैं, और कहते हैं " क्षमा चाहता हु ,महत्मा जी मैने आपके प्रति विश्वास नहीं किया , "!! महात्मा जी कहते हैं , " तुम्हारा कल्याण हो , बताएं आपके यहां आने का प्रयोजन क्या है, ,"!! राजा उनसे हाथ जोड़कर कहते हैं " अब आप से कोई बात छुपी नहीं है ,तो अब आप ही कृपा करें , "!! महात्मा जी कहते हैं " यदि मुझ पर विश्वास हो तो मैं कुछ उपाय करूं,"!! राजा हाथ जोड़कर खड़े हो जाते हैं, और कहते है" महात्मा जी आप से क्षमा प्राथी हूं ,आप यदि अभी भी रूष्ट है तो मुझे आदेश करें मैं आपको मनाने के लिए क्या करू, "!! महात्मा जी मुस्कराकर एक फल उन्हे देते हैं और कहते हैं ," इसे ले जाकर अभी रानी जी को खिला दीजिए , ईश्वर सब भला करेंगे,"" ! राजा सर झुका कर फल लेते हैं और साष्टांग प्रणाम कर मंत्री जी के साथ जाते हैं, "!!