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छोड़ गाँव की अल्हड़ मस्ती।खुद को समझता शहरी हस्ती।।सोच ब्रांडेड पर चीजें सस्तीं।बातें जन-जन की अब डसतीं।।छूट गया ये रक्षाबंधन।टूट गया सपना तरु चंदन।।अब लगता नहीं मन किसी मोह में।गुजरे यौवन उहापोह