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अनुभव नीरस जीवन के

28 जुलाई 2022

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छोड़ गाँव की अल्हड़ मस्ती।
खुद को समझता शहरी हस्ती।।
सोच ब्रांडेड पर चीजें सस्तीं।
बातें जन-जन की अब डसतीं।।
छूट गया ये रक्षाबंधन।
टूट गया सपना तरु चंदन।।
अब लगता नहीं मन किसी मोह में।
गुजरे यौवन  उहापोह में।।
जगता मन थक जाते नैंन।
ख्वाबों को चिढ़ाती नीरस रैन।।
भावुक हो जाता बात-बात पे।
अटका था एक मसला जात-पात पे।।
दिल अब भी उसकी यादों में बेसुध हो खो जाता है।
जीवन की चाल को फ़ॉलो कर बीपी भी लो हो जाता है।।
ठीक बना ली दूरी हम से।
रोशनी का कोई मेल न तम से।।
एक विकल्प है घर जाने का।
दूजा विकल्प है मर जाने का।।
दोनों को लिए खड़ा हूँ मैं।
साहस के साथ अड़ा हूँ मैं।।
अनैतिक नियति का अब किस ओर इशारा है।
दूजे विकल्प का क्या कल्प जब जीवन ने हरपल मारा है।।
कुछ ख्वाबों का हो रहा सूर्यास्त।
डट खड़ा साहस नहीं हुआ परास्त।।
जीवन का अब कोई ठिकाना नहीं।
कुछ प्राप्त बिन घर जाना नहीं।।
सांझ भये ढल जाने से कर सूर्य सामर्थ्य पे सन्देह नहीं।
क्षणिक गमन से किरण-पुन्ज के मम जीवन तम का गेह नहीं।।

✍️भरत शरण  "नौसिखिया"

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