खैर अंजाम जो भी हो सब हँस के झेल रहा हूँ मैं। कभी वक्त मुझसे तो कभी वक्त से खेल रहा हूँ मैं।।
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छोड़ गाँव की अल्हड़ मस्ती,खुद को समझता शहरी हस्ती।सोच ब्रांडेड पर चींजे सस्ती,बातें जन-जन कीं अब डसती।।छूट गया ये रक्षाबंधन।टूट गया सपना तरु चंदन।।अब लगता नहीं मन किसी मोह में।यौवन गुजरे उहापोह मे
बचपन में मास्टर जी के डण्डे के साथ-साथ मधुमक्खी के डंक ने भी प्रेरणा दी कि अगर कोई आपके मुँह का निवाला छीन निज मुँह मिठास हेतु मुँह मारे तो आप की सूझ-बूझ से उसका मुँह इतना जरूर सूज जाना चाहिए कि भविष्