जगह जगह भंडारे है और जगह जगह उलल्लास है।
क्योंकि आज गणेश जी का बहुत बड़ा त्यौहार है
महंगे महंगे प्रसाद चढ़ाना जारी है
तेरी नही अब मेरी प्रसाद चढाने की बारी है
इसी होड़ में लोगो की लंबी लंबी कतार है
एक दूसरे के प्रति दिखाई नही देता प्यार है
भजन कीर्तन में लोग पुर्ण रूप से मस्त है
लेकिन एक कोने में बैठा बच्चा भूख प्यास से त्रस्त है।
वो मायूस आस लगाये बैठा है, गणेश जी की और देखकर
भूख प्यास छुपाये बैठा है
उसे देख देख कर लोग नज़रंदाज़ कर जाते हैं
केवल गणेश जी की और पूरा ध्यान लगाते हैं
उसी समय मंदिर का पंडित जोर से आवाज़ लगाता है
झूठे पत्तल जल्दी बीनो जोर से डाट लगाता है
भूखा बच्चा लेकिन खुश हो जाता है
झूठे पत्तलों को चाट चाट कर पेट की आग बुझाता है
पत्थर की उस मूर्ति की आंखों में अब पानी है
उसे नही दिखाई देता निस्वार्थ कोई दानी है
गणेश जी को खुश करने को बडी बडी अगरबत्ती और दीपक है
लगता है यह कलयुग की सुरुआत का पहला ही रूपक है
यह केसी पूजा कैसे मन्दिर और कैसे यह भंडारे है
जहां आज भी गरीब बच्चे मन्दिर की चौखट पर
भूखे ही सो जाते हैं
शाम हो गई अब विसर्जन की बारी है
उधर विसर्जन के नाम पर दारू की भी तैयारी है
माफ करना भाइयो यह मेरे दुःखी मन की आवाज़ हैं
भूख से मरने बाले बच्चो की आत्मा की चीत्कार है