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भूपेंद्र जम्वाल की डायरी

भूपेंद्र जम्वाल

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bhupendra jamwal ki dir

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भूपेंद्र जम्वाल की अन्य किताबें

पुस्तक के भाग

1

फिर एक बार

9 मार्च 2016
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फिरएक बार फिरमैं दुखी हो जाता हूं जब याद आते हैं तुम्हारी आंखों से गिरते वे दो आंसू मुझे याद है तुम्हारा मुझसे सीट मांगना मेरे पास बैठना और वह पल /जब लगा था मुझे शायद जानता हूं मैं तुम्हें कई जन्मों से फिर तुमने कहा था मुझसे खिड़की के पास तुम्हें बिठाने को और मैंने कहा था तुम्हें शीशे के नीचे से बाज

2

विवश धूप

9 मार्च 2016
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उनका मिलनाजैसे धूप का खिलना देता है सुखद अनुभूति ।जब छंटते हैं धुंधलकेचीरकर अँधेरे कोहट जाती है शिकनफैलती है मुस्कानबिखरता है प्रकाश।मिट जाते हैं मतभेद/मनभेद सभी।लगे खुल जाएगा मौसमसदा के लिए ;न अवरोध न धुंधलका।विश्वास जगाती है धूप सब साफ़ साफ़ होने का/उजास होने का।धूप भी है मगर/विवश सी; चलती है एक ही

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