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कहानी-तुम बिन अधूरी हूँ मैं

9 दिसम्बर 2017

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दोस्तो ये कहानी एक रियल लव स्टोरी है। एक ऐसी लड़की की कहानी जिसमे उसकी जिंदगी का हर दर्द और गम हर खुशी का जिक्र किया है। कैसे उसकी मुलाकात उस शख्श से हुई जो आज उसकी ज़िन्दगी बन गया। लोग कहते हैं कि पहले प्यार को कभी नही भुलाया जा सकता।मगर मैं इस बात से सहमत नही हूँ।पहला प्यार ही जब जिंदगी बर्बाद कर दे तो ऐसा प्यार भला कोई याद रखेगा। चलिये कहानी शुरू करते हैं। अंजली(काल्पनिक नाम)उम्र 17 साल एक नटखट सी शरारती लड़की थी। युं कहे तो सिर्फ बचपना था। दुनिया सी चालाकी और स्वार्थ नही था उसमे। सबकी लाड़ली थी। मम्मी पापा की जान थी।कोई भी जिद करती तो घर वाले मान जाते।अगर नही मानता कोई तो पूरा घर सिर पर उठा लेती।उसकी यही बचकानी हरकते कभी कभी उसकी माँ को परेशान कर देती। धीरे - धीरे समय करवटे ले रहा था। यौवन की दहलीज पर कदम रख चुकी थी। उसकी ही बड़ी बहन (ताऊ जी मतलब बड़े पापा की बेटी) रुचि जो बहुत ही धूर्त किस्म की थी। स्वार्थी तो बहुत ही थी।ऊपर से इतनी बिगड़ी हुई कि कब उसने उसी चालाकी में अंजली को फंसा लिया और अंजली समझ ही नही पायी। रुचि का एक मित्र था सौरव ।दोनो बस एक दूसरे को इस्तेमाल कर रहे थे।मगर अंजली इन सब बातों से अंजान थी।सौरव का एक मित्र जो अंजली पर नज़रे गड़ाए था। रुचि ने उसकी हरकतों को भांप लिया।उसने अंजली को बताया कि दीपक तुम्हे बहुत पसंद करता है।उस समय यौवनावस्था का प्रारंभ था।उस वक़्त तो बस खुद को आईने में निहारना और ये सोचना कि क्या मैं इतनी खूबसूरत हूँ।यही सोच अंजली की भी थी। बिना कुछ सोचे समझे एक गलत रास्ते पर चल पड़ी अंजली।उस एक गलती का उसकी ज़िन्दगी पर कितना गलत प्रभाव पड़ा शायद उस वक़्त को कोसती रही अंजली।ये कोई प्रेम नही था सिर्फ आकर्षण था। यदि प्रेम जैसा कुछ होता तो क्या उसकी ज़िन्दगी में इतनी तकलीफे होती। मुश्किल से 1 साल तक का सफर गुजरा होगा।दीपक ने निजी स्वार्थ को पूरा करने के लिये अंजली को इस्तेमाल करने का सोचा मगर भगवान ने अंजली को उस धूर्त इंसान से बचा तो लिया मगर उसकी भारी कीमत चुकानी पड़ी अंजली को ।वो कीमत थी उसका अपना घर छूटना। उस दिन को याद करके अंजली आज भी सिहर जाती है।जब भारी कदमो के साथ उसने अपना घर छोड़ा था।साथ मे उसके मां बाप भी थे।एक भरा पूरा परिवार बिखर सा गया। धीरे - धीरे समय के साथ चलती गयी अंजली।पूरे 6 साल बाद वापिस आ गयी अंजली फिर से अपने घर। कितना खुश थी।हर रोज अपने घर वापिस जाने की दुआ माँगती।उसके पिता जी सरकारी नौकरी करते थे। तो उनके साथ ही रहती थी। धीरे -धीरे ज़िन्दगी सामान्य होने लगी थी।इन 6 सालों में उसने कभी ये नही सोचा कि वो दीपक से उसके धोखे का सबब पूछे।कोई वास्ता नही रखना था उसको उससे। 6 साल बाद उसकी ज़िन्दगी में वो शख्श आ ही गया। जो उसकी तकदीर बनके आया था। बहुत ही साधारण और सीधा था राज। मगर पढ़ायी में अव्वल ।अंजली ने राज को देखा तो वो बस खुद को ही भूल गयी।दिल ही दिल मे चाहने लगी थी राज को।मगर डरती थी कि कही वो उसको खो न दे।अक्सर आना जाना लगा रहता था राज का । जॉब करता था बाहर। जब भी छुट्टियों में घर आता तो अंजली के घर भी जाता।चूंकि दोनो के परिवार रिश्तेदार थे तो मुलाकात हो ही जाती थी। इसी कश्मकश से बाहर आके एक दिन अंजली ने राज से अपने प्यार का इजहार कर दिया।मगर ये क्या राज ने इनकार कर दिया।क्योंकि ये सिर्फ एकतरफा चाहत थी।खैर धीरे धीरे अंजली ने राज के दिल मे जगह बना ली।कब अंजली को राज की आदत हो गयी पता ही नही चला। आज अंजली की ज़िन्दगी में राज से बढ़कर कोई नही है।शायद आज जो एहसास है वो सच्चा प्यार होता है।दोनो एक दूसरे से मीलो दूर है।आज उनकी लव स्टोरी को 2 साल बीत चुके हैं।मग़र तमाम मुश्किलो के बाद भी अंत मे अंजली को सच्ची चाहत मिल ही गयी। वो राज के साथ पूरी ज़िंदगी जीना चाहती है।हर अरमान जो एक लड़की के होते हैं अपने पार्टनर के लिये।वो सब राज के साथ पूरे करने है।भगवान उसके इस प्यार को हमेशा बनाये रखे। राज जैसा इंसान सबको मिलता भी नही है।भले ही मोहब्वत में इनकार किया मग़र आज वो भी बिना बोले मन ही मन अंजली से प्यार करता है।इस कहानी को पूरा करना भगवान। अंजली राज से बहुत प्यार करती है।राज के बिना जीना बेईमानी हैं अंजली के लिये। उस शख्श ने अंजली को एक नई ज़िन्दगी दी।बस दोनो यूँ ही साथ रहे।आपको मेरी कहानी कैसी लगी । राज अंजली का पहला और आखरी प्यार है ।राज का साथ उसको हर जन्म में मिले।यही तमन्ना है अंजली की। 'प्यार सच्चा हो तो राह मिल ही जाती है हर सफर अधूरा रह जाये ......ये जरूरी तो नही' 'उपासना पाण्डेय'आकांक्षा

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आलोक सिन्हा

आलोक सिन्हा

उपासना जी ---- कहानी बहुत अच्छी है | आगे भी लिखती रहिये | आप में लिखने की काफी प्रतिभा है | बस उसे निरंतर लिखते रहने से थोड़ा सा निखारना शेष है |शुभ कामनाएं |

9 दिसम्बर 2017

niyati arya

niyati arya

upashna ji bhut kismt Wale hote h wo log jinhe schha pyar milta h...but kuch aeise bhi log h jinhe pyar me Dhokha hi milta h

9 दिसम्बर 2017

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रचनाएँ
Upasna
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ये मेरा मन उदास सा क्यों है, सब के साथ हूँ। मगर क्यों एक भ्रम जाल सा बन गया है। मैंने भी महसूस किया ये बदलाव हैं। क्यों मुझे कुछ समझ नही आता। जितना सुलझा रही हूं ये उलझे हुऐ रिश्ते। उतना ही उलझते जा रहे है मेरे ये रिश्ते। किसी को छोड़ नही सकती,वो भी खास है और ये रिश्ता भी खास है। क्यूं मैं खुद खोती जा रही हूँ। मेरे लिये दोनो ही रिश्ते जज्बातो से जुड़े हैं। एक को भी खो दिया तो जी नही पाएंगे। रिश्तों में कैद मेरी ज़िंदगी है। खुल कर जीना चाहती हूं ज़िन्दगी अपनी। मगर दिल की बेचैनी ने परेशान कर रखा है। रिश्तों में खुद को उलझा रखा है। "उपासना पाण्डेय" हरदोई( उत्तर प्रदेश)

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