आज देवराज सिंह के एकलौती बेटी अमृता का जन्मदिन है जिसकी तैयारी पुरे जोरो शोरो से हो रहा था। तभी एक नौजवान आदमी अमृता को फुलों का गुलदस्ता देते हुए कहता है "हैप्पी बर्थडे टू माइ प्रिंसेस" "अमीत तुम! लन्दन से कब आए " अमीत को देखकर अमृता के चेहरे पर खुशी छा गई। अमीत "बस जैसे ही पता चला कि आज हमारी प्यारी दोस्त का जन्मदिन है तो हम तुरंत सब काम छोड़कर आपके पास आ गए।" दोनों कितने खुश लग रहे हैं ना एक दूसरे से मिलकर "अमीत के पापा महावीर बोले।" "हा खुश क्यो ना हो, आखिर दोनों बचपन से बेस्ट फ्रेंड जो ठहरे "अमृता के पापा देवराज मुस्कुराते हुए बोले।" तभी महावीर अमृता और अपने बेटे अमीत को अपने पास बुलाते हैं। महावीर "देवराज क्यो ना इन दोनों की दोस्ती को रिश्तेदारी में बदल दिया जाए।" देवराज "मैं समझा नहीं..!!" महावीर "मैं कह रहा हूं कि यह दोनों बचपन से एक दूसरे को जानते है पहचानते हैं तो क्यो ना हम इन दोनों की शादी करवा दे, आपका क्या ख्याल है..??" देवराज डर गए और चिल्लाते हुए बोले "नहीं... नहीं यह तुमने क्या बोल दिया..! सेक्योर्टी जल्दी से अमृता को मंदिर वाले कमरे में लेकर जाओ इससे पहले कि वो आ जाए..!!" सेक्योर्टी अमृता को मंदिर वाले कमरे में लेकर जाने लगे लेकिन कमरे के चौखट पार करने से पहले ही अमृता ने जोर से चिख कर सैक्योर्टी वालों को धकेला दिया सेक्योर्टी वाले हवा में उड़कर दूर जा गिरे। अमृता डरावने हंसी से हंसती हुई पिछे मुड़ी उसका चेहरा डरावना और भयानक दिखने लगा था थोड़ी ही देर में वह एक खुबसूरत लड़की से एक खूंखार डायन का रूप ले चुकी थी और कुटील मुस्कुन से देवराज से बोली "तुझे क्या लगता है तू अपनी बेटी को मुझसे बचा सकता है.. हा हा हा.. पागल बुड्डे तेरा यह सपना कभी पूरा नहीं होगा कोई ब्रह्मास्त्र नहीं आयेगा तेरे कुल की रक्षा करने क्योंकि तुम लोगों ने खुद उसे अपने से दूर कर दिया है। अभी तो मैं जा रही हूं लेकिन मैं वापस आउंगी भुगतोगे तुम सब भुगतोगे।" यह कहकर अमृता बेहोश होकर गिर पड़ी। देवराज ने जल्दी से अमृता को मंदिर के अंदर भगवान के चरणों के नीचे सुला दिया और वापस कमरे से बाहर आ गए। बाहर सब यह जानने के लिए खड़े थे कि यह सब क्या था ! देवराज के बाहर आते ही महावीर आश्चर्य से पूछा "यह सब क्या था देवराज.! अमृता को अचानक क्या हो गया था.? देवराज गंभीर स्वर में पुछे.?
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