नानी का गाँव |
बचपन के दिन वो याद आते हैं , जब नानी के घर हम अपनी छुट्टिया बिताते थे.कितना सुकून होता था वो सुबह की अंगड़ाई में ,लाल-लाल सूरज भी हमे नही सताता था, रोज नहाधोकर आता - और हमे प्यार से जगाता था,उसके साथ आती थी उसकी सैकड़ो रंगीन सहेलिया, जो हर काली चीज को रंगती चली जाती,वो ठंडी-ठंडी सुबह, वो अधखुली आँखो