shabd-logo

दांपत्य का द्रोणगिरि

2 नवम्बर 2016

267 बार देखा गया 267

भगवान राम ने अयोध्या लौटकर राजपाट संभाल लिया था. अयोध्या की जनता बेहद प्रसन्न थी कि आखिर रामराज्य आ ही गया. वैसे जो लोग भरत के राज्य में अपनी सेटिंग बिठा चुके थे, रामराज्य में भी खुश थे. आखिर राजा ही तो बदला था, बाकि सारे महकमे तो वैसे के वैसे ही काम कर रहे थे. तेल के दाम भरत के राज में भी बढ़ते रहे थे, और अब राम के राज में भी बढ़ रहे थे. सीमा पर पड़ोसी देश की नापाक हरकतें भरत के राज में बर्दाश्त होते हुए जारी थीं और राम राज में बर्दाश्त ना होते हुए भी जारी थीं. खुद राम की जन्म भूमि का मुद्दा भरत के राज में भी अदालत में अटका था और अब राम राज में भी सुलटने की उम्मीद नहीं थी, फिर भी जनता खुश थी कि रामराज्य आ गया.

पर अयोध्या में कोई तो था, जिसके जीवन में भारी परिवर्तन आ गया था. राम रावण युद्ध के बाद उप सेनाध्यक्ष हनुमान जी को अतिविशिष्ट सेवा मेडल प्रदान किया गया था और वे सेनाध्यक्ष के पद के उम्मीदवार थे. पर अयोध्या के कानून के अनुसार, विदेशी मूल के होने के कारण वे सेनाध्यक्ष नहीं बन सकते थे बल्कि सेना में रहते हुए भी उन्हें प्रतिवर्ष वीसा नवीनीकरण करवाना पड़ता था. हारकर, राजगुरु तथा राजकीय विधिवेत्ता वसिष्ठजी ने सुझाया कि हनुमान जी किसी अयोध्या की नागरिक से विवाह कर लें तो पाँच वर्षों में वे नागरिकता के पात्र हो जायेंगे.

हनुमान जी दुनिया भर के कुंवारों के आदर्श थे, उनका विवाह करना इसी प्रकार होता जैसे ममता बनर्जी का कम्यूनिस्ट हो जाना या मुलायम सिंह जी का भाजपा में शामिल हो जाना. पर राम के प्रति अपनी भक्ति के चलते हनुमानजी ने अपनी छवि की परवाह नहीं की. नतीजा यह हुआ कि माता सीता की अध्यक्षता में उर्मिला, माँडवी व श्रुतकीर्ति की समिति ने दौड़धूप कर अयोध्या की एक सुंदर, गृहकार्य में दक्ष, सौभाग्यवती को श्रीमती बजरंग बली यानि मिसेज बी. बी. हनुमंतप्पा के पद पर आसीन कर दिया.

श्रीमती हनुमंतप्पा में वे सभी गुणावगुण मौजूद थे जो किसी मध्यमवर्गीय बाला से उच्चवर्गीय अफसरानी में कायांतरित होने वाली मादा में होते हैं. नल-नील, सुग्रीव आदि बालसखाओं का रात बिरात बेधड़क आ टपकना बंद हो गया. जामवंत जैसे बुजुर्गों को घर में गला खंखारकर घुसना पड़ता. सीता माता पहले फल आदि लाने के लिये हनुमानजी की सेवाओं पर निर्भर थीं पर अब वे भी आत्मनिर्भर हो गयीं. हनुमान जी अब तक रात को सोने से पहले भगवान राम की चरण सेवा किया करते थे, पर अब...

दांपत्य के आरंभिक खुशनुमा दिन तेजी से बीतने लगे. हनुमान जी को सख्त हिदायत कर दी गयी थी कि कार्यालय पूरी यूनीफॉर्म में जाया करें, लाल लंगोट भले भीतर पहनें, पर सार्वजनिक सौष्ठव प्रदर्शन सलमान खान जैसे कुंवारों के लिये ही छोड़ दें और तेल सिंदूर का लेप सिर्फ नहाने से पहले करें. हनुमान जी पाँच वर्षों में अयोध्या के नागरिक तो हो गये, पर तब तक एक बालवानर के पिता बन चुके थे, जिसे वायुमार्ग से कंधे पर बिठाकर स्कूल छोड़ने जाना और वापस लाना भी हनुमान जी का ही उत्तरदायित्व था.

फिलहाल बालवानर का दीपावली अवकाश चल रहा था. हनुमान जी को उसे होमवर्क करवाने तथा श्रीमतीजी का घर की सफाई में हाथ बंटाने के लिये एक माह का अवकाश लेना पड़ा. महलनुमा सरकारी आवास में छत पर से मकड़ियों के जाले साफ करने, डिस्टेंपर पेंट करने तथा डिब्बे, संदूकचे चढ़ाने उतारने के लिये पूँछ का विलक्षण उपयोग जो करना पड़ रहा था.

दीपावली वाले दिन शाम को सभी अधीनस्थ कर्मचारियों और सहकर्मियों का मिलने आना तय था. हनुमानजी ने बैठक की व्यवस्था देखी. संतुष्ट होकर घड़ी भर को सुस्ताना ही चाहते थे कि श्रीमतीजी का आदेश सुन पड़ा, "घर में मिठाई नहीं है, दशरथ महल के सामने रामआसरे की दुकान से मिठाई लेते आइयेगा. और हाँ, रास्ते में बतियाने ना लग जाइयेगा. जरा जल्दी आइयेगा, अभी बहुते काम पड़ा है."

हनुमानजी चल दिये. रास्ते जाने पहचाने थे पर अपनी पहचान छुपाकर रखना उनकी पुरानी आदत थी जो अब मजबूरी बन चुकी थी. जहाँ भी लोग पहचान लेते, अपनी पसंद के रामकथा के प्रसंग सुनाने के आग्रह करने लगते. हनुमान जी पूरे जोश में रामकथा के देखे अनदेखे प्रसंगों का वर्णन करने लगते और अक्सर समय का ध्यान नहीं रख पाते. कई बार इस कारण हनुमान जी को देर हुई और फिर घर पर डाँट पड़ी. यूं, हनुमान जी शुरू से ही भक्त वत्सल रहे पर अब घर में श्रीमती वत्सला हनुमंतप्पा के चलते अपनी लोकप्रियता और रुचि दोनों से हाथ धोना पड़ा.

राम आसरे हलवाई पुराना आदमी था. भरत के शासन काल में उसने शाही महल में मिठाई सप्लाई के ठेके लिये थे जो आज भी जारी थे. साल भर के बचे स्टॉक से दीपावली की मिठाई बनाकर बेचता था. माल निकालने के चक्कर में जनता को भारी डिस्काउंट की नयी नयी स्कीम भी देता था. जनता जनार्दन तो उसकी स्कीमों से बाग बाग हो जाती थी.

आज राम आसरे ने नया तरीका निकाला था. आज उसकी स्कीम थी, "हर हाथ हजार का". यानि एक हाथ की हथेली पर जितनी भी मिठाई उठा पाओ, सारी की सारी हजार रुपये में ले जाओ. कई लोग थे जो दो किलो, तीन किलो यहाँ तक कि पाँच पाँच किलो तक मिठाई उठाकर ले जा रहे थे. महँगाई के बोझ से तले लोग, राम राज्य में मिठाई के बोझ के तले दबे सुख पा रहे थे.

हनुमान जी ने भी कैश काउंटर पर हजार का नोट दिया. राम आसरे के बेटे ने नोट पाँच छः बार परखा, भेष बदले हनुमान जी को देखा, पर पहचाना नहीं, उसने आगे बढ़ने का इशारा कर दिया. हनुमानजी आगे बढ़े. लगभग सौ डेढ़ सौ किलो मिठाई शेष थी, हनुमान जी ने मन ही मन तुलसीदास जी का धन्यवाद किया कि रोज रामचरितमानस सुनते रहने से उन्हें अपनी क्षमताओं का भलीभांति पता है.

हनुमानजी ने मिठाई के थाल एक पर एक रखे और अपनी बाँयी हथेली से सारे थाल उठा लिये. राम आसरे की दुकान पर खड़े सभी लोगों ने यह कारनामा देखा और हनुमान जी को पहचान लिया. जोरदार नारेबाजी हुई, "बजरंग बली की जय". और इससे पहले कि भक्तगण आटोग्राफ माँगने कागज पेन बढ़ायें, हनुमान जी तीर की तरह दुकान से निकले और चल दिये घर की ओर. राम आसरे प्रसन्न था कि इसी तरह ही सही, उप सेनाध्यक्ष महोदय को सस्ते में मिठाई पकड़ा ही दी. अब मार्च में सेना को रसद देने का ठेका मिलने में दिक्कत नहीं होगी.

हनुमानजी ने घर पँहुचकर सारे थाल डाइनिंग टेबल पर रखे, पंखे की रफ्तार बढ़ाई और अपने शर्ट के दो बटन खोले. बहुत दिनों बाद उन्होंने इतना वजन उठाया था और चूँकि इस बार राम नाम लेकर नहीं उठाया था, तो थकान तो होनी ही थी.

श्रीमतीजी ने मिठाई का ढ़ेर देखा तो उन्हें ताव आ गया, "यह क्या किया? कितनी सारी मिठाई उठा लाये? अगले महीने का वेतन एडवांस मिल गया तो क्या मतलब, सारा मिठाई में उड़ा दो? पता नहीं किसने सलाह दी इतनी मिठाई लाने को, बच गयी तो महीने भर सड़ती रहेगी. इतने दिन से कह रही हूँ, मेरे लिये नयी साड़ी ला दो वह तो लाये नहीं, सारी तनख्वाह मिठाई में फूंक कर आ गये लगता है? अब इतनी मिठाई खाने क्या पूरे मुहल्ले को बुलाना है? एक काम ढ़ंग से नहीं कर सकते? हर बात, हर काम कितना समझाना पड़ता है फिर भी कुछ ना कुछ गड़बड़ कर ही देते हो. पता नहीं कैसे, राम जी ने इतनी बड़ी फौज का जिम्मा तुम्हें सौंप दिया है, यहाँ छोटी सी गृहस्थी तो तुमसे संभलती नहीं?" और भी ना जाने क्या क्या...

हनुमान जी चुपचाप सुनते रहे. उन्हें याद आ रहा था, एक बार जब संजीवनी बूटी की पहचान नहीं हो पाने पर वे पूरा द्रोणगिरि उठा लाये थे, तब राम जी ने उनको कितना सराहा था और अब...

श्रीमतीजी के धाराप्रवाह प्रलाप के बीच हनुमान जी के मन में तीन अक्षरों वाला एक लफ्ज तीन बार गूँजा, और वे सोचने लगे, काश उनका नाम हनुमान ना होकर रहमान, सुलेमान या सलमान होता...

(हम अपने आराध्यदेव महावीर बजरंगबली को साक्षी मानकर निवेदन करते हैं कि इस काल्पनिक कथा का उद्देश्य किसी की धार्मिक भावनाओं को ठेस पँहुचाना ना होकर मात्र शुद्ध व्यंग्य द्वारा पाठकों का मनरंजन करना है. फिर भी किसी व्यक्ति, समुदाय या संस्था की भावनाओं को हानि होती है तो हम अग्रिम क्षमाप्रार्थी हैं. सभी पाठकों को प्रकाशपर्व दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं.)

रंजन माहेश्वरी की अन्य किताबें

1

विधि मंत्री की विकलाँग विधा

26 अगस्त 2016
0
0
0

(यह लेख हमने कुछ वर्ष पूर्व लिखा था और कई स्थानों पर प्रकाशित हुआ था, परंतु भारत देश में घोटाले, घोटालेबाज व घोटालागाथाएँ, धर्म की भांति सनातन हैं, अतः यह लेख आज भी सामयिक है, सुधी पाठकों की सेवा में इस वेबसाईट पर भी समर्पित)कुछ समय प

2

श्राद्ध

17 सितम्बर 2016
0
2
1

लाला चतुर्भुज अपने पिता की इकलौती संतान थे, अतः पिता की वणिक बुद्धि और व्यापार उन्हें पूरा पूरा मिला. पिता प्यार से उन्हें चतुर कहा करते थे, और वे यथानाम तथागुण चतुर ही थे. पिताजी के कड़वे तेल के धंधे को रिफाइंड आयल बिजनेस में बदलकर उ

3

दांपत्य का द्रोणगिरि

2 नवम्बर 2016
0
2
0

भगवान राम ने अयोध्या लौटकर राजपाट संभाल लिया था. अयोध्या की जनता बेहद प्रसन्न थी कि आखिर रामराज्य आ ही गया. वैसे जो लोग भरत के राज्य में अपनी सेटिंग बिठा चुके थे, रामराज्य में भी खुश थे. आखिर राजा ही तो बदला था, बाकि सारे महकमे तो वैसे

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए