लोकतंत्र का शुक्ल पक्ष है
निकला है चुनावी चाँद
मुंह पर पहन शरीफ मुखौटा
छोड़ छोड़ कर अपनी मांद
चिल्ला रहे है रंगे सियार
देश मना रहा चुनावी त्यौहार
तोड़ ताड मर्यादा भाषा की
संस्कारों को ताक पर रख कर
बस वोटों की अभिलाषा में
सच्चाई को बेच बाच कर
वाक्युद्ध में हो रहे ईंट पत्थरों के वार
देश मना रहा चुनावी त्यौहार
नेता के मुंह राम, बगल में छुरी
एक हाथ सफ़ेद कबूतर पीछे गिरगिट दूजे हाथ
पांच साल तक इक दूजे पर आग थी ऊगली
होंठो पर मुस्कान लिये,अब इक दूजे के है साथ साथ
रंग बदलते नेताओं से गिरगिट भी है शर्मसार
देश मना रहा चुनावी त्यौहार
बयानबाज़ी का बाजार गर्म है
नारेबाजी का है जोर शोर
असमंजस से घिरा है वोटर
चौकीदार चौकन्ना है या है चोर
सच्चे झूठे वादों की है हो रही बौछार
देश मना रहा चुनावी त्यौहार
हर दांव की है यहां उठा पटक
चुनावी दंगल बना है हिन्दुस्तान
क्या करे किसे चुने असमंजस में है वोटर
इक थैली के चट्टे बट्टे , सब है एक समान
फिर क्या फरक पड़ता है चोर या डाकू की बने सरकार
देश मना रहा चुनावी त्यौहार